Updated on: 19 April, 2025 11:07 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
शिवसेना (UBT) के नेता आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य बनाने के निर्णय का विरोध किया है. उनका मानना है कि पहली कक्षा के बच्चों पर तीन भाषाओं का दबाव डालना उचित नहीं है और सुझाव दिया कि नई भाषा को धीरे-धीरे सिखाया जाए.
Aaditya Thackeray
शिवसेना (UBT) के नेता आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने के निर्णय का विरोध किया है. उनका मानना है कि पहली कक्षा के बच्चों पर तीन भाषाओं का दबाव डालना उचित नहीं है. आदित्य ठाकरे ने कहा, "बच्चों पर तीन भाषाएं एकसाथ लादना गलत है. पहली कक्षा के बच्चों पर मराठी, अंग्रेजी और अब हिंदी, तीन भाषाओं का दबाव डालना ठीक नहीं है." उन्होंने इस फैसले को बच्चों के मानसिक विकास और उनकी शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला बताया.
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आदित्य ठाकरे का मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें अच्छे और उपयोगी ज्ञान से सुसज्जित करना है, न कि उन्हें अनावश्यक बोझ तले दबा देना. उन्होंने सुझाव दिया कि नई भाषा को धीरे-धीरे, क्रमिक रूप से सिखाया जाए, ताकि बच्चों पर बोझ न बढ़े. उनका यह भी कहना था कि शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव करते समय बच्चों की मानसिकता और क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए, और हर बच्चे के लिए सीखने की गति अलग होती है.
ठाकरे ने यह भी कहा कि बच्चों को पहले अपनी मातृभाषा मराठी में अच्छे से शिक्षा मिलनी चाहिए, ताकि उनकी मूलभूत समझ और सोचने की क्षमता मजबूत हो. इसके बाद, धीरे-धीरे अन्य भाषाओं को भी जोड़ा जा सकता है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के बजाय, इसे एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था, ताकि बच्चे इसे अपनी इच्छा से सीख सकें, न कि इसे एक अनिवार्यता के रूप में महसूस किया जाए.
वहीं, आदित्य ठाकरे ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि यह निर्णय राज्य के नागरिकों की सोच और विचारधारा से मेल नहीं खाता है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में लोग मराठी को अपनी पहचान मानते हैं और इस निर्णय से उनकी भावनाएं आहत हो रही हैं. ठाकरे ने यह भी कहा कि बच्चों पर भाषा का दबाव डालने के बजाय, उन्हें ऐसे कौशल सिखाए जाएं जो उन्हें भविष्य में व्यावसायिक और सामाजिक रूप से सफल बना सकें.
आखिरकार, आदित्य ठाकरे ने यह कहा कि सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए और बच्चों की शिक्षा के प्रति एक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. उनका मानना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को ज्ञान देने के साथ-साथ उन्हें मानसिक तनाव से मुक्त रखना होना चाहिए, ताकि वे अपनी शिक्षा को पूरे मन से ग्रहण कर सकें.
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