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न्यूज़क्लिक संपादक को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत

Updated on: 15 May, 2024 02:05 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

प्रबीर पुरकायस्थ को ट्रायल कोर्ट में जमानत मुचलके पर रिहा किया जाएगा. जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की.

सुप्रीम कोर्ट. फ़ाइल चित्र

सुप्रीम कोर्ट. फ़ाइल चित्र

सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामले में न्यूज़क्लिक केस वर्डिक्ट के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को जमानत दे दी है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया है. आपको बता दें कि अब प्रबीर पुरकायस्थ को ट्रायल कोर्ट में जमानत मुचलके पर रिहा किया जाएगा. आपको बता दें कि जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. जिसमें यूएपीए के तहत गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया. 


आपको बता दें कि प्रबीर पुरकायस्थ को पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन पर न्यूज़क्लिक पोर्टल के माध्यम से राष्ट्र-विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था और इतना ही नहीं, बल्कि इसके लिए चीन से अवैध रूप से धन भी प्राप्त किया था. इसी कारण से उन्हें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) (न्यूज़क्लिक केस वर्डिक्ट) के तहत गिरफ्तार किया गया था.



सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया गया, तो पुलिस द्वारा गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं था. इस कारण वह जमानत का हकदार है. आपको बता दें कि पिछले हफ्ते इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़क्लिक के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने में जल्दबाजी करने पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को फटकार लगाई थी. 


 

इस मामले में कपिल सिब्बल ने कोर्ट से यह भी कहा कि पुरकायस्थ के वकील को जानकारी नहीं दी गई. जब आरोपी ने इस पर आपत्ति जताई तो जांच अधिकारी ने उसके वकील को टेलीफोन पर सूचित किया और रिमांड आवेदन वकील को व्हाट्सएप पर भेजा गया. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि उन्हें पिछले दिन शाम 5.45 बजे गिरफ्तार किया गया था, फिर उन्हें सुबह 6 बजे पेश करने की जल्दी क्यों थी? आपके पास पूरा दिन था. अदालत ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार रिमांड का आदेश पारित होने पर आरोपी के वकील को उपस्थित रहना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं होने पर अदालत ने इसे रद्द कर दिया. आखिरकार लंबी बहस के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.


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