Updated on: 03 March, 2025 09:37 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
मध्य प्रदेश के एक दृष्टिबाधित की मां ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वप्रेरित याचिका में परिवर्तित कर दिया और सुनवाई की.
फ़ाइल छवि
सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को केवल शारीरिक अक्षमता के आधार पर न्यायपालिका में भर्ती के लिए अयोग्य नहीं माना जा सकता. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने यह फैसला सुनाया है. मध्य प्रदेश के एक दृष्टिबाधित की मां ने राज्य की न्यायिक भर्ती नीति के लिए न्याय की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें भर्ती में विकलांग लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को स्वप्रेरित याचिका में परिवर्तित कर दिया और सुनवाई की.
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सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 1994 का नियम 6ए दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के प्रति अनुचित है. यह नियम उन्हें न्यायिक सेवाओं के लिए अयोग्य बनाता है. अदालत ने इस नियम और राज्य सरकार की 18 फरवरी, 2023 की अधिसूचना को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि राज्य को समान अवसर प्रदान करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए.
फैसले के दौरान न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा, "किसी भी व्यक्ति को केवल शारीरिक अक्षमता के आधार पर न्यायिक सेवाओं में भागीदारी से वंचित नहीं किया जाएगा." सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए कटऑफ नियम समान अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भेदभाव जो विकलांग लोगों को न्यायिक सेवाओं से दूर रखता है, उसे समाप्त किया जाना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवेदक और इस भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने वाले अभ्यर्थियों को इस फैसले के अनुसार समान अधिकार मिलेंगे. यदि वे इस पद के लिए योग्य होंगे तो उन्हें नियुक्त किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक निर्णय के अनुसार, राज्यों को दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायपालिका में अवसर उपलब्ध कराने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे. यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी मार्गदर्शक का काम करेगा तथा दिव्यांग व्यक्तियों के लिए नये अवसर पैदा करेगा. अदालत ने इस मुद्दे को "सबसे महत्वपूर्ण" बताया और कहा कि वह सुनंदा भंडारी मामले, इंद्रा साह के संवैधानिक ढांचे और कई अन्य निर्णयों पर चर्चा करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची है.
मध्य प्रदेश में दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए न्यायपालिका के दरवाजे खुल गए.
शारीरिक विकलांगता वाले व्यक्ति को न्यायिक सेवा के लिए अयोग्य नहीं माना जाएगा.
राज्यों को विकलांग लोगों को समान अवसर प्रदान करने होंगे.
यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी दिशानिर्देश का काम करेगा.
यह विकलांग लोगों के लिए एक मजबूत संदेश है कि वे समान अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं.
हाल ही में महाराष्ट्र में लंबित बीएमसी चुनाव से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में फिर टल गई है. अब अगली सुनवाई 4 मार्च को निर्धारित की गई है. इस मामले पर जानकारी देते हुए चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि सुनवाई के बाद जब नतीजे घोषित होंगे तो चुनाव की तैयारी में कम से कम 90 दिन का समय लग सकता है.
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