Updated on: 31 March, 2024 10:14 AM IST | mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि होली के आठ दिन बाद शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है. शीतला अष्टमी को कई जगहों पर बसौड़ा और बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता अन्नपूर्णा का भी अवतार हैं
प्रतिकात्मक तस्वीर
हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि होली के आठ दिन बाद शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है. शीतला अष्टमी को कई जगहों पर बसौड़ा और बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता अन्नपूर्णा का भी अवतार हैं. वो जहां भी वास करती हैं उस घर में भोजन इत्यादि की कमी कभी नहीं होती.
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शीतला माता को ठंडे खाने का लगता है भोग
शीतला अष्टमी के दिन इसे मानने वालों के घरों में खाना नहीं बनता. शीतला अष्टमी पर एक दिन पहले ही खाना बना लिया जाता है, जिसे अगले दिन खाया जाता है. इसी बासी खाने को बसौड़ा कहते हैं. इस भोजन का भोग मां शीतला को लगाया जाता है और उन्हें ठंडे जल से स्नान भी कराया जाता है.
खासतौर पर इस दिन तासीर में भी ठंडा जैसे दही, चावल आदि का भोग लगाया जाता है. इसी भोजन को भक्त स्वयं भी ग्रहण करते हैं. शीतला माता को बासी खाने का भोग क्यों लगाया जाता है इसके पीछे भी एक मान्यता है.
क्या है इसके पीछे की कथा
शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है ये सुनते ही मन में सवाल तो कई आते हैं कि आखिर ऐसा क्यों? दरअसल, एक बार माता शीतला पृथ्वी पर एक बूढ़ी माता का वेश धर कर आईं. देखने के लिए कि आखिर कौन उनको मानता है और कौन उनकी पूजा करता है.
इस दौरान शीतला माता के ऊपर चावल का उबलता हुआ गरम पानी फेंक दिया था. इससे उनके शरीर पर फफोले और छाले पड़ गए. माता इधर उधर भागते हुए चिल्लाने लगीं.तब एक कुम्हार ने उन माता को अपने यहां बैठाया और उन पर खूब सारा ठंडा पानी डाला और रात की बनी राबड़ी और थोड़ा दही दिया.
ज्वार आते राबड़ी और दही चावल को ठंडे खाने से शरीर को ठंडक मिलती है.माता को थोड़ा आराम मिला फिर कुम्हारन ने कहा कि मां तुम्हारी चोटी कर दूं. जैसे ही महिला ने उनके बालों को सवारा तो उनके सर में आंख दिखी वो डर कर भागने लगी ऐसे में मां शीतला ने कुम्हारन को रोका और मां अपने असली रूप में आ गई.
कुम्हारन ऐसे में सोचने लगी कि मैं मां को कहां बैठाऊं तो मां ने कहा कि तेरी सेवा से मैं प्रसन्न हूं.तू कुछ मांग इस पर कुम्हारन में मांग लिया. तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा - हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गांव में स्थापित होकर यहीं निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया. ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद की सप्तमी को भक्ति-भाव से पूजा कर, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसकी गोद हमेशा भरी रखना. साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहां बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दें और पुरुष भी ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता न आए.
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