Updated on: 18 September, 2025 04:59 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड ने महाराष्ट्र सरकार - को भी नोटिस जारी किए और सुनवाई निर्धारित की.
बॉम्बे उच्च न्यायालय. फ़ाइल चित्र
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में पीड़ितों के परिजनों द्वारा दायर एक अपील पर बरी किए गए सात लोगों को नोटिस जारी किए. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने अभियोजन पक्ष - राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) और महाराष्ट्र सरकार - को भी नोटिस जारी किए और अपील पर सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की.
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रिपोर्ट के मुताबिक हाईकोर्ट विस्फोट में जान गंवाने वाले छह लोगों के परिजनों द्वारा बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था. इस अपील में 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात आरोपियों को बरी करने के विशेष अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. पिछले सप्ताह दायर की गई अपील में दावा किया गया था कि दोषपूर्ण जाँच या जाँच में कुछ खामियाँ आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं. इसमें यह भी तर्क दिया गया था कि (विस्फोट की) साजिश गुप्त रूप से रची गई थी और इसलिए, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता.
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विशेष एनआईए अदालत द्वारा 31 जुलाई को पारित सात आरोपियों को बरी करने का आदेश गलत और कानून की नज़र में गलत है और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. रिपोर्ट के अनुसार 29 सितंबर, 2008 को, महाराष्ट्र के नासिक जिले में मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट हो गया, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और 101 अन्य घायल हो गए. अपील में कहा गया है कि निचली अदालत के न्यायाधीश को आपराधिक मुकदमे में "डाकिया या मूकदर्शक" की भूमिका नहीं निभानी चाहिए. इसमें आगे कहा गया है कि जब अभियोजन पक्ष तथ्य उजागर करने में विफल रहता है, तो निचली अदालत प्रश्न पूछ सकती है और/या गवाहों को बुला सकती है.
अपील में कहा गया है, "दुर्भाग्य से निचली अदालत ने एक मात्र डाकघर की तरह काम किया है और अभियुक्तों को लाभ पहुँचाने के लिए एक अपर्याप्त अभियोजन की अनुमति दी है." रिपोर्ट के मुताबिक इसने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की गई जाँच और मुकदमे के तरीके पर भी चिंता जताई और आरोपियों को दोषी ठहराने की माँग की. अपील में कहा गया है कि राज्य के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने सात लोगों को गिरफ्तार करके एक बड़ी साज़िश का पर्दाफ़ाश किया और तब से अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी वाले इलाकों में कोई विस्फोट नहीं हुआ है. इसमें दावा किया गया है कि 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले की जाँच अपने हाथ में लेने के बाद, एनआईए ने आरोपियों के खिलाफ आरोपों को कमज़ोर कर दिया.
विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि केवल संदेह ही वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता और दोषसिद्धि के लिए कोई ठोस या विश्वसनीय सबूत नहीं है. एनआईए अदालत की अध्यक्षता कर रहे विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा था कि आरोपियों के खिलाफ कोई "विश्वसनीय और ठोस सबूत" नहीं है जो मामले को संदेह से परे साबित कर सके, पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार.
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि यह विस्फोट दक्षिणपंथी उग्रवादियों द्वारा सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मालेगांव शहर में मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने के इरादे से किया गया था. एनआईए अदालत ने अपने फैसले में अभियोजन पक्ष के मामले और की गई जाँच में कई खामियों को उजागर किया था और कहा था कि आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए. ठाकुर और पुरोहित के अलावा, आरोपियों में मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे.
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