Updated on: 25 June, 2025 09:29 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
महाराष्ट्र में हिंदी को कक्षा 1 से 4 तक अनिवार्य विषय बनाने के फैसले पर उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने विरोध जताया है. पवार का कहना है कि यह निर्णय बच्चों पर अनावश्यक बोझ डालेगा, क्योंकि उनका पाठ्यक्रम पहले ही भरा हुआ है.
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महाराष्ट्र में हिंदी को कक्षा 1 से 4 तक के छात्रों के लिए अनिवार्य विषय बनाने का विवाद और गहरा हो गया है. विपक्षी दलों के साथ ही महायुति के सहयोगी और उपमुख्यमंत्री अजित पवार भी इस फैसले के खिलाफ हैं. पवार ने मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि इतनी कम उम्र में छात्रों पर एक अतिरिक्त भाषा का बोझ डालना उचित नहीं है. उनका यह बयान भाजपा, अजित पवार की एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना द्वारा समर्थित तीन-भाषा प्रारूप के फैसले के विपरीत है, जिसके तहत महाराष्ट्र के सभी स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा.
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पवार का कहना था कि बच्चों का पाठ्यक्रम पहले से ही भरा हुआ है और अगर कक्षा 1 से 4 तक हिंदी को अनिवार्य किया जाता है, तो यह छात्रों पर अनावश्यक दबाव डालेगा. हालांकि पवार ने यह स्पष्ट किया कि वह हिंदी या किसी अन्य भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि इसे कक्षा 5 से शुरू किया जाना चाहिए. उनका कहना था कि शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य छात्रों को मानसिक बोझ से मुक्त रखना है, न कि उन पर अतिरिक्त दबाव डालना.
सोमवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे), उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के नेताओं ने विरोध जताया था. बैठक में यह निर्णय लिया गया कि इस विषय पर कोई भी अंतिम निर्णय लेने से पहले मराठी विद्वानों, राजनीतिक दलों और अन्य संबंधित संगठनों से परामर्श किया जाएगा.
मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, शिक्षा मंत्री दादा भुसे इस सप्ताह विभिन्न हितधारकों से मुलाकात करेंगे और इस मुद्दे पर राज्य सरकार अगले सप्ताह या पखवाड़े के भीतर निर्णय ले सकती है. अप्रैल में, राज्य सरकार ने एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत महाराष्ट्र में तीन-भाषा प्रारूप लागू किया जाएगा, जिसमें हिंदी तीसरी भाषा होगी. हालांकि, विरोध के बाद सरकार ने इसे वैकल्पिक बना दिया, ताकि यह अनिवार्य न हो. आलोचकों ने इसे हिंदी को बढ़ावा देने का एक गुप्त प्रयास माना है.
एनईपी के तहत तीन भाषाओं में से दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए और एक क्षेत्रीय भाषा अनिवार्य होनी चाहिए, लेकिन इस फैसले को लेकर राज्य में विरोध और समर्थन दोनों ही पक्षों से तीव्र प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
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