Updated on: 30 June, 2025 09:30 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
महायुति सरकार ने स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने के अपने फैसले को वापस ले लिया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह निर्णय मराठी को दबाने की नीति का हिस्सा था और इस नीति का विरोध जारी रहेगा.
X/Pics, Harshvardhan Sapkal
देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी अनिवार्य करने के अपने फैसले को वापस ले लिया है. यह फैसला उस समय आया जब राज्य में इस मुद्दे पर विरोध बढ़ने लगा था. महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को रद्द करने के बाद, कांग्रेस और विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना की थी. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "अखिरकार सरकार को अपना फैसला रद्द करना पड़ा. यह निर्णय बुनियादी शिक्षा में मराठी को दबाने की नीति का हिस्सा था, और हम लगातार इसे वापस लेने की मांग कर रहे थे. आज सरकार ने यह कदम उठाया है."
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अखेर शासन निर्णय रद्द करावाच लागला.
— Harshwardhan Sapkal (@INCHarshsapkal) June 29, 2025
मुलभूत शिक्षणात मराठीला डावलणाऱ्या धोरणाला विरोध करून, मातृभाषेचा अभिमान टिकवण्यासाठी हुकुमशाही पद्धतीने काढलेला GR रद्द करावा अशी मागणी सातत्याने काँग्रेस पक्षाच्या माध्यमातून करत होतो, आज सरकारला शासन निर्णय रद्द करावाच लागला. pic.twitter.com/RvXXqYYCYY
सपकाल ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा, "सरकार का राक्षसी बहुमत का अहंकार टूट गया है! मराठी अस्मिता की जीत हुई है! हिंदी अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में जनता का आक्रोश और विपक्षी दलों का विरोध इतना बढ़ा कि अंततः सरकार को अपने दोनों सरकारी आदेशों को रद्द करना पड़ा."
सरकारचा रक्षसी बहुमताचा अहंकार गळून पडला! मराठी अस्मितेचा विजय झाला!
— Harshwardhan Sapkal (@INCHarshsapkal) June 29, 2025
हिंदी भाषा सक्तीच्या निर्णयाविरोधात महाराष्ट्रभर निर्माण झालेल्या जनआक्रोशासमोर अखेर महाभ्रष्ट महायुती सरकारला नमते घ्यावे लागले. विरोधी पक्षांनी घेतलेला ठाम पवित्रा, मराठी भाषाप्रेमी नागरिक संस्थांचा जोरदार…
उन्होंने आगे कहा, "विपक्षी दलों के कड़े रुख, मराठी भाषा-प्रेमी नागरिक संगठनों के विरोध और सोशल मीडिया पर उठी लहर के बाद सरकार ने यह फैसला लिया है. लेकिन हमें सतर्क रहना होगा, क्योंकि सत्ता में बैठे लोग कभी भी अपनी नीतियों को फिर से लागू करने की कोशिश कर सकते हैं. हम इस तरह की कोशिशों को फिर से नाकामयाब बना देंगे."
यह निर्णय उस समय लिया गया जब महाराष्ट्र में हिंदी के अनिवार्यकरण को लेकर एक तीव्र बहस छिड़ी हुई थी. मराठी भाषी नागरिकों और संस्थाओं ने इसे मातृभाषा के गौरव के खिलाफ बताया था. इसके अलावा, विपक्षी दलों ने इसे सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़ते हुए आलोचना की थी.
हर्षवर्धन सपकाल ने इस फैसले को मराठी अस्मिता की जीत बताया और राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि भविष्य में ऐसे फैसले न लिए जाएं जो महाराष्ट्र की संस्कृति और भाषाई विविधता को प्रभावित करें.
उन्होंने यह भी कहा कि सत्ता में बैठे लोग अपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू करने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी और अन्य संगठनों का विरोध हमेशा इस तरह के फैसलों का मुकाबला करेगा.
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