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बाल विवाह में वृद्धि का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

Updated on: 10 July, 2024 05:59 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले याचिकाकर्ता के वकील और केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर की दलीलें सुनीं.

प्रतीकात्मक छवि. फ़ाइल चित्र

प्रतीकात्मक छवि. फ़ाइल चित्र

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक एनजीओ की जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें देश में बाल विवाह में वृद्धि का आरोप लगाया गया था. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार जनहित याचिका में संबंधित कानून को "शब्दशः और भावना" के अनुसार लागू न करने का भी आरोप लगाया गया है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले याचिकाकर्ता `सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन` के वकील और केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलें सुनीं.

रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र ने दावा किया कि देश में बाल विवाह में उल्लेखनीय कमी आई है. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देते हुए एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से महिलाओं के लिए मासिक धर्म अवकाश पर मॉडल नीति का मसौदा तैयार करने को कहा


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र को राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करके महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक मॉडल नीति तैयार करने का निर्देश दिया. रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कथित तौर पर कहा कि यह नीति से जुड़ा मुद्दा है और इस पर न्यायालयों को विचार करने की जरूरत नहीं है. इसके अलावा, महिलाओं को इस तरह की छुट्टी देने के बारे में न्यायालय का ऐसा फैसला उल्टा और `हानिकारक` साबित हो सकता है, क्योंकि नियोक्ता उन्हें काम पर रखने से बच सकते हैं.


न्यायालय ने याचिकाकर्ता से पूछा कि छुट्टी से अधिक महिलाओं को कार्यबल का हिस्सा बनने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकेगा. इसने कहा कि इस तरह की छुट्टी को अनिवार्य करने से महिलाओं को `कार्यबल से दूर कर दिया जाएगा`. रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने याचिकाकर्ता और वकील शैलेंद्र त्रिपाठी की ओर से पेश हुए वकील राकेश खन्ना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के समक्ष मामला रखने की अनुमति दे दी. पीठ ने आदेश दिया, "हम सचिव से अनुरोध करते हैं कि वे नीति स्तर पर मामले को देखें, सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद निर्णय लें और देखें कि क्या एक आदर्श नीति तैयार की जा सकती है."


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