Updated on: 03 October, 2024 03:39 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जाति का इस्तेमाल हाशिए पर पड़े समुदायों के कैदियों के साथ भेदभाव करने के लिए नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट/फाइल फोटो
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों की जेल नियमावली में भेदभावपूर्ण प्रावधानों को खारिज कर दिया. इसमें जाति आधारित भेदभाव, कैदियों को अलग-थलग रखने और जेलों में असमान रोजगार वितरण की आलोचना की गई. रिपोर्ट के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जाति का इस्तेमाल हाशिए पर पड़े समुदायों के कैदियों के साथ भेदभाव करने के लिए नहीं किया जा सकता. अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए कि देश भर की जेलों में इस तरह की प्रथाएं खत्म हो जाएं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने कहा, "राज्य नियमावली के अनुसार जेलों में हाशिए पर पड़े वर्गों के कैदियों के साथ भेदभाव करने के लिए जाति एक आधार नहीं हो सकती है." साथ ही, रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की प्रथाओं की अनुमति नहीं दी जा सकती. कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी." इसने आगे आदेश दिया कि दोषियों को अपशिष्ट जल टैंकों की सफाई जैसे खतरनाक काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. पुलिस को जाति आधारित पूर्वाग्रह के मामलों को उचित गंभीरता से संभालने का निर्देश दिया गया है.
न्यायालय ने जाति की परवाह किए बिना सभी अपराधियों के बीच समान नौकरी वितरण के महत्व को भी रेखांकित किया और राज्यों को अपने जेल कानूनों को बदलने के लिए तीन महीने का समय दिया. रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला कल्याण, महाराष्ट्र की सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका के जवाब में आया, जिसमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में जेल मैनुअल में भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर किया गया था.
ये दिशानिर्देश अक्सर कैदी को उसकी जाति के आधार पर काम सौंपते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल जेल संहिता के अनुसार केवल प्रमुख जातियां ही खाना बनाती हैं, जबकि विशिष्ट जातियां झाड़ू लगाती हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने इन आरोपों पर ध्यान दिया था कि इन राज्यों के जेल मैनुअल उनकी जेलों में रोजगार के आवंटन में भेदभाव करते हैं और कैदियों की जाति तय करती है कि उन्हें कहाँ रखा जाए. तर्क में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया, जो आदतन और फिर से दोषी ठहराए गए कैदियों के बीच अंतर स्थापित करते हैं, जिसमें दावा किया गया है कि जो व्यक्ति आदतन लुटेरे, घर तोड़ने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें अन्य दोषियों से अलग करके वर्गीकृत किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी दोषियों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, चाहे उनकी जाति या मूल कुछ भी हो.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT