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कैसे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्थापित स्कूल, कॉलेज बना रहे हैं बालिकाओं को स्वावलंबी

Updated on: 14 July, 2025 07:19 PM IST | Mumbai
Bespoke Stories Studio | bespokestories@mid-day.com

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा तीन नि:शुल्क शिक्षण संस्थान स्थापित किये गए — कृपालु बालिका प्राइमरी स्कूल (2007), कृपालु बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज (1978).

निशुल्क शिक्षा

निशुल्क शिक्षा

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा कस्बे की पहचान कभी पिछड़ेपन और निरक्षरता से होती थी। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा को लेकर समाज उदासीन था। लेकिन समय ने करवट ली जब इस युग के प्रसिद्द संत जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इस क्षेत्र को अपनी निःस्वार्थ सेवा की कर्मभूमि बनाया।


उनकी प्रेरणा से इस क्षेत्र में तीन बालिका शिक्षण संस्थान स्थापित हुए - कृपालु बालिका प्राइमरी स्कूल (2007), कृपालु बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज (1978) और कृपालु महिला महाविद्यालय (1998)। 

विगत वर्षों में इन शिक्षण संस्थानों ने हजारों बालिकाओं का भविष्य संवारा है। इन संस्थानों में शिक्षा के साथ-साथ सभी आवश्यक वस्तुएं जैसे यूनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी, साइकिल, कंबल, छाते और पोषण सामग्री भी पूरी तरह नि:शुल्क दी जाती हैं।

समाज की सबसे बड़ी ज़रूरत बनी शिक्षा

कुछ वर्ष पहले तक कुंडा और उसके आसपास के गांवों में लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता था। गरीबी और सामाजिक रूढ़ियों के कारण उन्हें स्कूल भेजना व्यर्थ समझा जाता था, पर अब यहाँ की तस्वीर बदल चुकी है। गैर लाभकारी संस्था जगद्गुरु कृपालु परिषत् (JKP) द्वारा संचालित धर्मार्थ स्कूल, कॉलेजों ने यह साबित कर दिया है कि एक शिक्षित बेटी न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे समाज की दिशा बदलने में सक्षम होती है।

प्राथमिक स्तर से लेकर स्नातकोत्तर तक की शिक्षा इन संस्थानों में पूरी तरह नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण रूप में दी जाती है। यह पहल न केवल शिक्षा के क्षेत्र में वरदान साबित हुई है, बल्कि कन्याओं के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को भी नई ऊंचाइयों तक ले गई।

संस्थाओं का परिचय और योगदान

1. कृपालु बालिका प्राइमरी स्कूल (KBPS)

सन् 2007 में स्थापित यह विद्यालय कक्षा नर्सरी से 5वीं तक की छात्राओं को बुनियादी शिक्षा देता है। विद्यालय का उद्देश्य छात्राओं को प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की भी समझ देना है। यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम, योग, संगीत, कला और खेल गतिविधियों का नियमित आयोजन होता है।

2. कृपालु बालिका इंटरमीडिएट कॉलेज (KBIC)

1978 में स्थापित इस कॉलेज ने उस समय लड़कियों की शिक्षा के लिए आशा की किरण दिखाई जब पूरे क्षेत्र में माध्यमिक शिक्षा की सुविधाएं दुर्लभ थीं। कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा प्रदान करने वाला यह संस्थान हर साल उच्च परिणाम देता है, जिसमें अधिकांश छात्राएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होती हैं।

कृपालु महिला महाविद्यालय में आयोजित योग शिविर।

3. कृपालु महिला महाविद्यालय (KMM)

1998 में शुरू हुआ यह महाविद्यालय स्नातक (B.A., B.Sc.), स्नातकोत्तर (M.A.) और बी.एड. जैसी डिग्रियों की पढ़ाई नि:शुल्क प्रदान करता है। इसकी विशेष बात यह है कि यहां से निकलने वाली छात्राएं शिक्षक, वैज्ञानिक, प्रशासक और सामाजिक कार्यकर्ता बनकर देश और समाज का नाम रोशन कर रही हैं।

2023 में इस संस्थान की छात्रा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर स्वर्ण पदक जीता, जो इस कॉलेज की शैक्षणिक गुणवत्ता का जीवंत उदाहरण है।

महिला सशक्तिकरण

कहा जाता है कि “एक लड़के को पढ़ाना एक व्यक्ति को शिक्षित करना है, लेकिन एक लड़की को पढ़ाना दो परिवारों को शिक्षित करना है।” इस विचारधारा को जगद्गुरु कृपालु परिषत् के स्कूल, कॉलेजों ने जमीन पर साकार किया है।

इन संस्थानों में पढ़ने वाली छात्राएं न केवल स्वयं आत्मनिर्भर बनी हैं, बल्कि अगली पीढ़ी को भी शिक्षित और संस्कारित कर रही हैं। यह परिवर्तन एक सामाजिक क्रांति लाया है जिसने शिक्षा को समाज के मूल में स्थापित कर दिया है।

सेवा का संकल्प: नेतृत्व और विस्तार

2002 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षता अपनी ज्येष्ठ पुत्री सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी को सौंप दी। डॉ. विशाखा जी ने महिला शिक्षा के इस अभियान को और अधिक विस्तार दिया। 2024 में उनके गोलोकवास के बाद अब इस कार्य को उनकी छोटी बहनें सुश्री डॉ. श्यामा त्रिपाठी जी और सुश्री डॉ. कृष्णा त्रिपाठी जी दृढ़ता से आगे बढ़ा रही हैं।

इन संस्थानों की सफलता का एक कारण है बिना भेदभाव के सेवा। धर्म, जाति, वर्ग या संप्रदाय के भेद से ऊपर उठकर यह शिक्षा मिशन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित है।

जगद्गुरु कृपालु जी की दूरदर्शिता का प्रभाव

कुंडा जैसे पिछड़े क्षेत्र में जहां कभी बेटियों को घर से बाहर निकलने की भी अनुमति नहीं थी, आज वहीं से डॉक्टर, शिक्षक, पुलिस अधिकारी और वैज्ञानिक निकल रहे हैं। यह बदलाव महज शैक्षणिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक क्रांति का प्रतीक है।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा शुरू की गई यह शिक्षा यात्रा आज एक आंदोलन बन चुकी है। ऐसा आंदोलन जो भविष्य की पीढ़ियों को न केवल ज्ञान, बल्कि संस्कार, स्वावलंबन और स्वाभिमान भी दे रहा है।

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