ये फिल्में हमें याद दिलाती हैं कि दोस्ती सिर्फ हंसी-ठिठोली नहीं है — यह वो बंधन है जो हमें कठिन समय में संभालता है, खुशी में साथ नाचता है और बिना शर्त साथ देता है.
झनकार बीट्स
सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित यह फिल्म दो दोस्तों, दीप और ऋषि की कहानी है जो अपने करियर, वैवाहिक जीवन और आर.डी. बर्मन के प्रति प्यार के बीच संतुलन बनाते हैं. लेट-नाइट म्यूज़िक जैमिंग और ईमानदार बातचीतों के ज़रिए यह फिल्म दिखाती है कि पुरुषों की दोस्ती भी संवेदनशील, मज़ेदार और सच्ची हो सकती है.
दिल चाहता है
आकाश, समीर और सिड की दोस्ती इस बात का प्रमाण है कि सोच में भले ही फर्क हो, लेकिन सच्चे दोस्त हमेशा साथ खड़े रहते हैं. फिल्म बताती है कि मतभेदों के बावजूद दोस्ती टिक सकती है — अगर उसमें भरोसा और समर्थन हो.
3 इडियट्स
रैंचो, फरहान और राजू की कॉलेज वाली दोस्ती दिखाती है कि दोस्त वो होते हैं जो आपको वही बनने में मदद करते हैं जो आप वास्तव में बनना चाहते हैं, न कि जैसा समाज चाहता है. यह फिल्म दोस्ती को प्रेरणा, सपनों की पहचान और डर से लड़ने की ताकत के रूप में पेश करती है.
ये जवानी है दीवानी
बन्नी, नैना, अदिति और अवि की दोस्ती दो ट्रिप्स के ज़रिए गहराई पाती है. यह फिल्म दर्शाती है कि समय, करियर और प्यार के साथ-साथ सच्ची दोस्ती भी विकसित होती है — लेकिन उसका जुड़ाव कभी कम नहीं होता.
रंग दे बसंती
कॉलेज के मस्तीभरे दिन बिताने वाले डीजे और उसके दोस्त जब सामाजिक बदलाव के लिए खड़े होते हैं, तो उनकी दोस्ती एक उद्देश्य का रूप ले लेती है. फिल्म दिखाती है कि दोस्ती साधारण लोगों को असाधारण साहस दे सकती है.
काई पो चे
ईशान, गोविंद और ओमी की दोस्ती महत्वाकांक्षा, धोखा और सामाजिक तनाव के बीच परीक्षा से गुजरती है. यह फिल्म दोस्ती की जटिलताओं को असली और भावनात्मक अंदाज़ में दिखाती है — साथ ही यह भी कि सच्चे रिश्ते माफ़ी और त्याग की मांग करते हैं.
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा
अर्जुन, कबीर और इमरान की स्पेन ट्रिप उनके रिश्ते, दर्द और अधूरे एहसासों को फिर से जीने का मौका बनती है. साझा अनुभव और ईमानदार बातचीत उन्हें बेहतर इंसान बनने में मदद करती है.
ADVERTISEMENT