भावनात्मक कहानियों से लेकर प्रेरणादायक यात्राओं तक, बॉलीवुड ने हमें कुछ ऐसी सशक्त फिल्में दी हैं जो न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि रूढ़ियों को चुनौती देती हैं और दिव्यांग लोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाती हैं.
ब्लैक (2005)
निर्देशक: संजय लीला भंसाली
यह फिल्म एक बधिर और नेत्रहीन लड़की मिशेल मैकनेली और उसके शिक्षक (अमिताभ बच्चन) के बीच के रिश्ते को दर्शाती है. रानी मुखर्जी और बच्चन की दमदार अदाकारी के साथ, यह फिल्म आशा, आत्मबल और शिक्षा की ताकत की गूंज बन जाती है.
गुजारिश (2010)
निर्देशक: संजय लीला भंसाली
इस फिल्म में ऋतिक रोशन ने एक जादूगर का किरदार निभाया है जो एक हादसे के बाद क्वाड्रिप्लेजिया (चारों अंगों की लकवा) का शिकार हो जाता है. फिल्म इच्छामृत्यु जैसे संवेदनशील विषय को छूते हुए जीवन की गरिमा और आत्मनिर्णय की गहराइयों को दर्शाती है.
तारे ज़मीन पर (2007)
निर्देशक: आमिर खान
आमिर खान की निर्देशक के रूप में पहली फिल्म ने भारत में लर्निंग डिसएबिलिटी को लेकर दृष्टिकोण बदल दिया. डार्शील सफारी द्वारा निभाया गया एक डिस्लेक्सिक बच्चा पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था से जूझता है. फिल्म ने लाखों दिलों को छूते हुए विशेष जरूरतों वाले बच्चों के प्रति समाज की संवेदनशीलता को जगाया.
मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ (2014)
निर्देशक: शोनाली बोस
कल्कि कोचलिन ने सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त एक युवा महिला का किरदार निभाया है जो प्रेम, यौनिकता और आत्म-स्वीकृति की यात्रा पर निकलती है. यह फिल्म रूढ़ियों को तोड़ते हुए विकलांगता को बेहद ईमानदारी और संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है.
बर्फी (2012)
निर्देशक: अनुराग बसु
रणबीर कपूर एक मूक और बधिर युवक के रूप में नजर आते हैं, जो जीवन को अपने ही अनूठे तरीके से जीता है. प्रियंका चोपड़ा द्वारा निभाया गया एक ऑटिस्टिक लड़की का किरदार इस कहानी में और गहराई जोड़ता है. यह फिल्म प्रेम और जीवन की खामियों को अपनाने की एक खूबसूरत कोशिश है.
माय नेम इज़ खान (2010)
निर्देशक: करण जौहर
इस फिल्म में शाहरुख़ ख़ान ने रिज़वान ख़ान नाम के एक व्यक्ति का किरदार निभाया है, जिसे Asperger’s Syndrome है. वह अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलने की यात्रा पर निकलता है. यह फिल्म आत्म-स्वीकृति, पहचान और प्रेम की ताकत की कहानी कहती है, जो व्यक्तिगत संघर्षों के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों को भी छूती है.
इकबाल (2005)
निर्देशक: नागेश कुकुनूर
यह फिल्म एक ऐसे मूक और बधिर लड़के की कहानी है जो क्रिकेटर बनने का सपना देखता है. श्रेयस तलपड़े की सशक्त अभिनय और फिल्म की प्रेरणादायक कहानी इस बात का उदाहरण है कि जुनून और मेहनत किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है.
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