राना पांडे की कृतियां-तस्वीरें विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों पर केंद्रित है.
आपको इन सब्जेक्ट्स की ओर तरफ आकर्षित करता है, और आप ऐसी गहरी सच्चाइयों को उकेरने के लिए जरूरी विश्वास और तालमेल कैसे बनाते हैं?
मैं मानव जीवन के शांत, अक्सर अनदेखे पहलुओं की ओर आकर्षित होता हूँ क्योंकि वे उन सच्चाइयों को उजागर करते हैं जिनके बारे में शायद ही कभी बात की जाती है. मेरे लिए, फ़ोटोग्राफ़ी का मतलब सबसे पहले सुनना है. मैं बिना कैमरे के लोगों के साथ समय बिताता हूँ, उनकी दिनचर्या साझा करता हूँ, और उन्हें बताता हूँ कि मैं सिर्फ़ तस्वीरें लेने के लिए नहीं, बल्कि समझने के लिए हूँ. विश्वास धीरे-धीरे, उपस्थित, सम्मानजनक और पारदर्शी होने से बनता है.
आपने `Altars of Yearning: How India Prays` किताब में योगदान दिया है. इस प्रोजेक्ट के पीछे क्या प्रेरणा थी, और इस पर काम करते हुए आपने आस्था और भक्ति के बारे में क्या सीखा?
प्रेरणा भारत में भक्ति के विभिन्न रूपों को जानने की थी, सबसे जटिल अनुष्ठानों से लेकर प्रार्थना के सबसे सरल कार्यों तक. मैंने जो सीखा वह यह है कि आस्था अक्सर धर्म से ऊपर होती है, यह लचीलेपन, आशा और जुड़ाव की मानवीय आवश्यकता के बारे में ज़्यादा है.
हमें मिर्ज़ापुर की महिला कालीन बुनकरों के बारे में बताएँ. उस प्रोजेक्ट से आपको सबसे महत्वपूर्ण क्या मिला और इसने शिल्प, श्रम और कलात्मकता के बारे में आपके नज़रिए को कैसे बदला?
महिला बुनकरों के साथ समय बिताने से मुझे एहसास हुआ कि वैश्विक पहुँच के बावजूद उनका काम कितना अदृश्य है. वे घंटों धागे गूँथने में बिताती हैं, लेकिन शायद ही कभी खुद तैयार कालीन देख पाती हैं. इसने मेरे नज़रिए को बदल दिया, अब मैं शिल्प को सिर्फ़ कलात्मकता ही नहीं, बल्कि सहनशीलता भी मानता हूँ, और श्रम को एक गहरी मानवीय अभिव्यक्ति के रूप में देखता हूँ जो मान्यता की हक़दार है.
आप क्रिएटिविली से कैसे प्रेरित रहते हैं और यह कैसे सुनिश्चित करतें हैं कि आपका काम हमेशा अलग दिखे?
मैं जिज्ञासा से प्रेरित रहता हूँ. जब भी मैं किसी नई कहानी में कदम रखता हूँ, तो मैं उसे एक एक्सपर्ट की नहीं, बल्कि एक स्टूडेंट की मानसिकता से देखताहूँ. पुरस्कार तो एक तरह की पुष्टि हैं, लेकिन प्रेरणा इस बात से मिलती है कि मेरे आस-पास अभी भी अनगिनत अनकही कहानियाँ हैं.
आप फ़ोटोग्राफ़ी के कलात्मक और तकनीकी पहलुओं में कैसे संतुलन बनातें हैं? आपके काम में नैतिकता की क्या भूमिका है?
मेरे लिए, कहानी हमेशा तकनीक से पहले आती है. तकनीकी पक्ष महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे कभी भी प्रामाणिकता पर हावी नहीं होना चाहिए. नैतिकता से समझौता नहीं किया जा सकता. जब आप संवेदनशील विषयों पर काम कर रहे हों, तो लोगों के दर्द को सनसनीखेज बनाए बिना, उन्हें गरिमा और सच्चाई के साथ चित्रित करना आपका कर्तव्य है.
जब आप कोई नया डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट शुरू करते हैं, तो आपकी रिसर्च और योजना प्रक्रिया कैसी होती है?
आमतौर पर इसकी शुरुआत पढ़ने, स्थानीय लोगों से बात करने और बिना कैमरे के उस जगह पर समय बिताने से होती है. मैं तब तक खुद को उसमें डुबोने की कोशिश करता हूँ जब तक कि कहानी खुद-ब-खुद सामने न आने लगे. मैं तात्कालिकता के आधार पर तय करता हूँ कि कौन सी कहानियाँ सुनानी हैं, अगर मुझे लगता है कि किसी विषय को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है या गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, तो मैं तुरंत हस्तक्षेप करता हूँ.
आपका काम इंटरनेशनल लेवल पर प्रदर्शित हो चुका है. अपनी तस्वीरों को प्रदर्शित होते देखकर कैसा लगता है, और आप क्या उम्मीद करते हैं कि दर्शक क्या सीखेंगे?
रूस या मेक्सिको जैसी जगहों पर दीवारों पर अपना काम देखना सुकून देने वाला होता है. यह मुझे याद दिलाता है कि भारत के एक छोटे से गाँव में निहित कहानियाँ हज़ारों मील दूर किसी के साथ भी जुड़ सकती हैं. मैं उम्मीद करता हूँ कि दर्शक सहानुभूति, यह समझ लेकर जाएँ कि ये जीवन और संघर्ष हमारे अपने जीवन से हमारी सोच से कहीं ज़्यादा तरीकों से जुड़े हैं.
आप उन महत्वाकांक्षी डॉक्यूमेंट्री और ट्रैवल फ़ोटोग्राफरों को क्या सलाह देंगे जो प्रभावशाली काम करना चाहते हैं?
मेरी सलाह है कि धैर्य और ईमानदारी बरतें. सिर्फ़ `परफ़ेक्ट शॉट` के पीछे न भागें, बल्कि उस पल की सच्चाई का पीछा करें. लोगों के साथ समय बिताएँ, शूट करने से ज़्यादा उनकी बात सुनें, और अपनी तस्वीरों को सौंदर्यबोध के बजाय सहानुभूति से प्रेरित होने दें. प्रभावशाली काम ईमानदारी से आता है.
राना पांडे के साथ हमारी बातचीत के साथ यह स्पष्ट है कि उनकी फ़ोटोग्रॉफी सिर्फ़ तस्वीरों का संग्रह नहीं है; यह मानवीय जुड़ाव और सहानुभूति की शक्ति का प्रमाण है. वह हमें याद दिलाते हैं कि सबसे प्रभावशाली कहानियाँ अक्सर शांत, रोज़मर्रा के पलों में ही मिलती हैं, और एक तस्वीर बदलाव का उत्प्रेरक हो सकती है. राना का काम एक सशक्त आह्वान है, जो हम सभी को और करीब से देखने, ज़्यादा ध्यान से सुनने, और उस साझा मानवता को पहचानने का आग्रह करता है जो हम सभी को एकजुट करती है.
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