Updated on: 09 February, 2025 09:45 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
मुंबई के डब्बावाले 2017 के बीएमसी चुनावों में किए गए वादों को पूरा करने में शिवसेना की विफलता पर नाराज हैं. पार्टी ने डब्बावालों के उत्थान के लिए कई योजनाएँ घोषित की थीं, लेकिन केवल डब्बावाला भवन का निर्माण ही पूरा किया गया.
Representational Image
मुंबई के डब्बावाले, जो अपनी अनुशासित और समयबद्ध लंचबॉक्स डिलीवरी सेवा के लिए प्रसिद्ध हैं, शिवसेना की ओर से किए गए वादों के अधूरे रहने पर गहरी निराशा व्यक्त कर रहे हैं. 2017 के बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों में शिवसेना ने डब्बावाला समुदाय के उत्थान के लिए कई वादे किए थे, लेकिन उनमें से अधिकांश आज तक पूरे नहीं किए गए हैं.
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पार्टी ने अपने विज़न डॉक्यूमेंट में डब्बावालों की कार्यशैली को सुव्यवस्थित करने और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए एक समर्पित योजना का वादा किया था. इन वादों में शामिल थे:
>> स्वतंत्र कंपनी का गठन – डब्बावालों को एक संगठित और वित्तीय रूप से सुरक्षित संरचना प्रदान करने के लिए एक औपचारिक कंपनी बनाई जानी थी.
>> ₹5 करोड़ की वित्तीय सहायता – नवगठित कंपनी के लिए सरकार से प्रारंभिक वित्तीय सहायता सुनिश्चित की जानी थी.
>> साइकिल, पार्किंग, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की सहायता – साइकिल खरीदने, समर्पित पार्किंग स्थल उपलब्ध कराने, और उनके परिवारों को शैक्षिक एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने का आश्वासन दिया गया था.
>> डब्बावाला भवन का निर्माण – एक समर्पित भवन बनाया जाना था, जिसमें समुदाय के लिए कार्यालय और विश्राम स्थल की सुविधा हो.
इनमें से अब तक केवल डब्बावाला भवन के निर्माण का वादा पूरा किया गया है, जबकि अन्य योजनाएँ सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गईं. इससे डब्बावालों में असंतोष बढ़ता जा रहा है.
शिवसेना की उदासीनता पर डब्बावालों का गुस्सा
मुंबई डब्बावाला एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तालेकर ने इस मुद्दे पर नाराजगी जताते हुए कहा, "शिवसेना ने सिर्फ एक वादा निभाया है – डब्बावाला भवन का निर्माण. बाकी योजनाओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. मैंने व्यक्तिगत रूप से उद्धव ठाकरे को कई पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. अगर वे वादे पूरे करने के इच्छुक नहीं थे, तो उन्हें झूठे वादे नहीं करने चाहिए थे."
डब्बावालों का कहना है कि पार्टी ने चुनावी लाभ के लिए उनके हितों की बात की, लेकिन जीतने के बाद उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया. यह स्थिति खासकर तब अधिक निराशाजनक हो गई जब उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बने, लेकिन फिर भी डब्बावालों की समस्याओं को हल करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
आने वाले चुनावों में असर पड़ने की संभावना
डब्बावाला समुदाय ने अब इस मुद्दे को लेकर उद्धव ठाकरे से औपचारिक बैठक करने की योजना बनाई है, ताकि अपनी चिंताओं को सीधे उनके सामने रखा जा सके. आगामी बीएमसी चुनावों को देखते हुए, इस असंतोष का राजनीतिक असर हो सकता है और यह मतदाताओं की राय को प्रभावित कर सकता है.
डब्बावालों की नाराजगी न केवल शिवसेना की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रही है, बल्कि यह मुंबई के अन्य श्रमिक वर्गों के लिए भी एक चेतावनी का संकेत है. अब देखना होगा कि शिवसेना इस मामले में क्या रुख अपनाती है और क्या वह अपने अधूरे वादों को पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी या नहीं.
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