Updated on: 14 April, 2025 10:20 AM IST | Mumbai
Dipti Singh
तेज़ी से बढ़ते तापमान, कंक्रीट की घुटन और घटती हरियाली ने शहर को उबाल दिया है. साल 2024 में अब तक 10 से ज़्यादा हीटवेव दिन दर्ज किए जा चुके हैं. सबसे ज़्यादा असर ट्रैफिक पुलिस, डब्बावालों, दिहाड़ी मज़दूरों और झुग्गीवासियों पर पड़ा है – जिनके पास न राहत है, न विकल्प.
Representational Image, Pics/Ashish Raje
मुंबई — वो शहर जो कभी अपनी समुद्री नमी और स्थिर मौसम के लिए जाना जाता था, अब उसी नमी के नीचे तपती धूप में झुलस रहा है. जहां पहले गर्मी सहन करने लायक हुआ करती थी, वहीं अब स्थिति चिंताजनक है. बढ़ते तापमान, कंक्रीट के जंगल, गायब होती हरियाली और लगातार बढ़ते प्रदूषण ने मिलकर मुंबई को शहरी हीट आइलैंड (UHI) के चक्रव्यूह में धकेल दिया है.
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इस साल अब तक, मुंबई ने 10 से अधिक हीटवेव दिनों का सामना किया है — जो कि एक दशक पहले तक दुर्लभ हुआ करते थे. यह बदलाव केवल मौसम विज्ञान की चिंता नहीं है, बल्कि यह उन हज़ारों-लाखों ज़िंदगियों का सवाल है, जो हर दिन चिलचिलाती सड़कों पर जीने को मजबूर हैं.
सबसे ज़्यादा कौन झुलस रहा है?
मुंबई की ट्रैफिक पुलिस, डब्बावाले, डाकिए, निर्माण मजदूर, और झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लाखों लोग – इन सभी के लिए यह गर्मी जानलेवा बन चुकी है. महालक्ष्मी में ड्यूटी कर रहे कांस्टेबल होनाजी मोरे कहते हैं, "पानी पीने के बाद भी चक्कर आ जाता है, लेकिन पोस्ट छोड़ने की इजाज़त नहीं है." डब्बावालों की हालत भी कुछ ऐसी ही है – बिना किसी संस्थागत सहयोग के, वो नींबू पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स से खुद को संभालते हैं, क्योंकि घर बैठना उनके लिए विकल्प नहीं.
झुग्गियों में गर्मी नहीं, गैस की तरह फैलती है
‘घर बचाओ, घर बनाओ आंदोलन’ के संयोजक बिलाल खान का कहना है, "झुग्गियों और ट्रांजिट कैंपों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. ये वो लोग हैं जिनके घरों में वेंटिलेशन नहीं है, पानी सीमित है और ठंडी छतों जैसी कोई सुविधा नहीं. ऐसे में सरकार की चुप्पी और भी ज्यादा तकलीफ देती है."
उनका सवाल सीधा है — “जब अहमदाबाद जैसे शहर के पास गर्मी से निपटने की कार्य योजना है, तो मुंबई जैसे शहर के पास क्यों नहीं?”
डेटा चीख-चीख कर चेतावनी दे रहा है
Respirer Living Sciences द्वारा किए गए हालिया अध्ययन में यह बात साफ़ हुई है कि मुंबई अब ‘माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन’ में बदल रहा है. 1 से 22 मार्च, 2025 के बीच:
>> वसई पश्चिम: 33.5°C
>> घाटकोपर: 33.3°C
>> कोलाबा: 32.4°C
>> पवई: 20.4°C
एक ही शहर में 13°C का अंतर न सिर्फ़ चौंकाने वाला है, बल्कि खतरनाक भी. इसका सीधा असर स्वास्थ्य, ऊर्जा खपत और सामाजिक असमानता पर पड़ रहा है.
समाधान सिर्फ एसी नहीं है
Respirer के संस्थापक रौनक सुतारिया का मानना है कि मुंबई को अब पड़ोस-स्तर पर प्लानिंग की ज़रूरत है. “हर क्षेत्र की अपनी जलवायु बन चुकी है. हमें परावर्तक छतें, हरित गलियारे, वाटर ब्रेक ज़ोन और स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ बढ़ना होगा.”
अब और देरी नहीं
मुंबई को एक मजबूत, समावेशी और डेटा-आधारित ‘हीट एक्शन प्लान’ की ज़रूरत है – खासकर इसलिए क्योंकि ये संकट आने वाले वर्षों में और गहराता जाएगा. अगर आज हम योजना नहीं बनाएंगे, तो कल ये गर्मी सिर्फ़ असहनीय नहीं, बल्कि जानलेवा भी हो सकती है.
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