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वर्ली कोलीवाडा में उत्साह के साथ मनाया गया `कोबर होली`, चूड़ियों और फूलों से सजाया गया देवी के स्वरूप को

Updated on: 24 March, 2024 04:25 PM IST | mumbai
Ujwala Dharpawar | ujwala.dharpawar@mid-day.com

कोलीवाडा में आमने-सामने दो चालियों के बीच एक लंबा खंबा बनाया जाता है. इसे देवी के रूप में सजाया जाता है.

सुसज्जित स्तंभ के नीचे एकवीरा देवी की एक छोटी मूर्ति भी स्थापित की जाती है. कोलीवाडा में रह रही महिलाएं नारियल, सुपारी, हल्दी कुंकु चढ़ाती हैं और मूर्ति की पूजा करती हैं. 

सुसज्जित स्तंभ के नीचे एकवीरा देवी की एक छोटी मूर्ति भी स्थापित की जाती है. कोलीवाडा में रह रही महिलाएं नारियल, सुपारी, हल्दी कुंकु चढ़ाती हैं और मूर्ति की पूजा करती हैं. 

Worli Koliwada Holi: होली एक रंगों का त्योहार है. इसे यह सर्दियों के अंत और वसंत-फसल की शुरुआत में मनाया जाता है. यह त्यौहार खास कर उत्तर भारत और पश्चिम भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. आपको जानकार हैरानी होगी कि मुंबई में स्थित कोलीवाडा में होली उत्सव मनाने के अपना एक अलग तरीका है. होली उत्सव से कुछ दिन पहले इस त्योहार की शुरुआत होती है.  कोलीवाडा में आमने-सामने दो चालियों के बीच एक लंबा खंबा बनाया जाता है. इसे देवी के रूप में सजाया जाता है. कभी-कभी तो जन जागरूकता फैलाने के लिए कई थीम का  उपयोग किया जाता है. होली उत्सव में रंग भरने के लिए भव्य रंगोली भी निकाली जाती है. यहां पर प्रत्येक चाली की एक अलग सजावट और रंगोली थीम होती है. इसे देवी का रूप देकर फूलों, चूड़ियों से सजाया जाता है. देवी की छवि को एक बड़े स्तंभ पर खड़ा किया जाता है. इसके साथ ही सुसज्जित स्तंभ के नीचे एकवीरा देवी की एक छोटी मूर्ति भी स्थापित की जाती है. कोलीवाडा में रह रही महिलाएं नारियल, सुपारी, हल्दी कुंकु चढ़ाती हैं और मूर्ति की पूजा करती हैं. 


 मुंबई के वर्ली कोलीवाडा में रहने वाली स्वरूपा केणी ने होली के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए बताया कि, `इस होली को हम कोबर होली कहते है. होली के एक दिन पहले इसे मनाया जाता है. इसमें हम इसे हम पारंपरिक रीति रिवाज से साथ आ कर मनाते है. इसे हम शिमगा भी कहते है. देवी को हम नैवेद्य के तौर पर पुरन पोली, कलिंगड, उबले हुए चने भी देते है. होली को मनाने के लिए हम अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को भी आमंत्रित करते हैं. उन्हें भी हम पुरन पोली, कलिंगड, उबले हुए चने खाने के लिए देते हैं. जो मेहमान आती है उन्हें यह फिश भी खिलाते है. हमारे चल में जो होली खड़ी की है उसे `बाबू सुकूर मास्टरची होली` (विश्वनाथ कोली) कहा जाता हैं.` 



बबन वगाडे ने बताया कि `होली का त्योहार मनाने के पीछे उद्देश यह भी है कि कोली जब जब समुद्र में मछली पकड़ने जाए वह सुरक्षित वहां से बाहर आए. साथ ही ज्यादा से ज्यादा समुद्र में उन्हें मच्छी मिले. उनके व्यवसाय में बरकत हो. इस त्योहार के बारे में मैं आपको बताना चाहूंगा कि नाच-गाने के साथ यह उत्सव रात भर चलता है. अगले दिन धूमधाम और भक्ति के साथ अलाव जलाया जाता है.` 

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