भीखा बेहराम कुआं, जो दक्षिण मुंबई के चर्चगेट स्टेशन के पास स्थित है, पारसी समुदाय के लिए एक पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है. इस कुएं ने आज 300 वर्षों का सफर तय किया है. (Pics: Anurag Ahire)
और यह मुंबई के सबसे पुराने मीठे पानी के कुओं में से एक है. यह कुआं 1725 में भीकाजी बेहराम पांडे नामक एक व्यवसायी द्वारा बनवाया गया था, जो प्यासे यात्रियों और स्थानीय लोगों की दुर्दशा से बेहद दुखी थे.
उन्होंने यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया कि लोगों को हर वक्त पानी की उपलब्धता हो. इसके लिए उन्होंने एक ऐसा कुआं खुदवाया जो सालभर पानी की आपूर्ति करता रहे.
भीखा बेहराम कुआं सिर्फ एक जल स्रोत नहीं, बल्कि पारसी समुदाय के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक बन चुका है.
कुएं के छत्र वाले परिसर में केवल पारसी लोग ही प्रवेश कर सकते हैं, जबकि इसके पीछे स्थित नलों के माध्यम से अन्य समुदाय के लोग भी इस कुएं का पानी उपयोग कर सकते हैं.
यह कुआं आज भी अपनी मूल कार्यक्षमता को निभा रहा है, अर्थात लोगों को पानी उपलब्ध कराना, जो 300 साल बाद भी जारी है.
इस कार्यक्रम में पारसी समुदाय के लोगों ने कुएं के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को उजागर किया, और 300 साल पुरानी इस धरोहर के संरक्षण की महत्वता पर भी चर्चा की.
वाटरनामा किताब के विमोचन से यह दिन और भी खास बन गया, जिसमें पानी की उपलब्धता और संरक्षण पर प्रकाश डाला गया.
भीखा बेहराम कुआं न केवल पानी का स्रोत है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर भी है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है. यह कुआं पारसी समुदाय के समर्पण, मानवता और सेवा की भावना का प्रतीक बना हुआ है.
300 सालों तक यह कुआं लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह एक अनमोल धरोहर बना रहेगा.
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