पैगंबर मोहम्मद के नवासे और शिया समुदाय के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह महीना विशेष रूप से शोक और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.
पैगंबर मोहम्मद के नवासे और शिया समुदाय के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन की शहादत की याद में यह महीना विशेष रूप से शोक और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.
इसी क्रम में मातमी रस्मों के लिए आवश्यक चीजों की बाजारों में जोरदार बिक्री हो रही है.
दुकानों पर चाकू, लोहे की जंजीरें, धार्मिक झंडे, इमाम हुसैन की प्रतीकात्मक झांकियों के miniature और अन्य मातमी सामान सजे हुए हैं.
इन वस्तुओं का प्रयोग खासकर `जंजीर-ज़नी` और `सीना-ज़नी` जैसी परंपरागत मातमी प्रथाओं के लिए होता है, जिनके माध्यम से श्रद्धालु अपने इमाम की कुर्बानी को याद करते हुए आत्म-विलाप करते हैं.
दुकानदारों के अनुसार, पिछले दो-तीन दिनों में मांग में अचानक वृद्धि हुई है और विशेष तौर पर युवाओं और मजलिस आयोजकों द्वारा बड़ी संख्या में खरीदारी की जा रही है.
हमारे कैमरे ने मुंबई के इन बाजारों की मातमी हलचल को क़ैद किया है.
तस्वीरों में आप देख सकते हैं—छोटे-बड़े स्टॉलों पर सजाई गई जंजीरें, दुकान के बाहर टंगे हुए काले झंडे और दुकानदारों की व्यस्तता जो इस विशेष समय में समुदाय की धार्मिक भावना का प्रतीक बन जाती है.
कुछ दुकानों पर श्रद्धालु अपने उपयोग के लिए चाकू और ब्लेड का चयन करते भी नजर आए.
मुंबई का शिया समुदाय पूरे आदर और गंभीरता के साथ इस धार्मिक महीने का पालन कर रहा है. यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा है जो न्याय, बलिदान और सच्चाई के लिए डटे रहने की प्रेरणा देती है—जिसका उदाहरण इमाम हुसैन ने सातवीं सदी में कर्बला की धरती पर अपने प्राणों की आहुति देकर प्रस्तुत किया था.
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