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राष्ट्रपति के स्नान से 12 घंटे रुका महाकुंभ, श्रद्धालु हुए परेशान – संजय राउत का आरोप

Updated on: 11 February, 2025 11:00 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के महाकुंभ स्नान को लेकर शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने तीखा हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति के स्नान के कारण 12 घंटे तक महाकुंभ मेला बाधित रहा, जिससे करोड़ों श्रद्धालु परेशान हुए.

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प्रयागराज में महाकुंभ अपने चरम पर है. करोड़ों श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के लिए उमड़ रहे हैं, लेकिन आस्था के इस महासंगम पर वीआईपी संस्कृति का साया मंडराने लगा है. मिली जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के स्नान के कारण सोमवार को पूरा कुंभ मेला लगभग 12 घंटे तक ठप पड़ गया. संगम तट को आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया. लोग दूर खड़े होकर बस इंतजार करते रहे, लेकिन उनके हिस्से में सिर्फ निराशा आई.

 



 


श्रद्धालुओं की श्रद्धा और संयम की परीक्षा तब और कठिन हो गई जब प्रशासन ने सुरक्षा के नाम पर संगम जाने वाले हर रास्ते को अवरुद्ध कर दिया. नतीजा—तीन से चार करोड़ लोगों की आस्था कतारों में खड़े-खड़े दम तोड़ती रही. तपती धूप में घंटों इंतजार के बाद भी स्नान का अवसर नहीं मिला, क्योंकि `विशेष` लोगों को विशेषाधिकार दिए जा चुके थे.

ऐसे में शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने इस वीआईपी संस्कृति पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा, "यह कुंभ मेला है या सत्ता का शक्ति प्रदर्शन? जब करोड़ों लोग अपनी आस्था के साथ यहां आते हैं, तब उनके अधिकारों को कुचलना कहां तक जायज है? भाजपा ने इस धार्मिक आयोजन को अपनी हाई-प्रोफाइल राजनीति का मंच बना दिया है."

इससे पहले भी महाकुंभ में वीआईपी संस्कृति को लेकर नाराजगी देखी गई थी, लेकिन सोमवार को राष्ट्रपति के स्नान ने इसे और गहरा कर दिया. उधर, आम आदमी न केवल प्रशासन के रवैये से परेशान था, बल्कि महाकुंभ से जुड़ी सुविधाओं की लूट-खसोट ने भी उनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं.

एयरलाइन्स कंपनियां आसमान छूते किराए वसूल रही हैं, ट्रेनों में जगह नहीं बची, रिक्शे से लेकर होटलों तक में मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं. श्रद्धालु बेहाल हैं, लेकिन व्यवस्था पर कोई लगाम लगाने को तैयार नहीं. यह कुंभ मेला श्रद्धा का पर्व है या सुविधाओं के नाम पर लूट का अड्डा बन चुका है?

महाकुंभ सिर्फ स्नान भर नहीं, यह जन-जन की आस्था का उत्सव है, लेकिन जब आस्था के इस पर्व पर आम आदमी को हाशिए पर धकेलकर वीआईपी संस्कृति को प्राथमिकता दी जाती है, तो सवाल उठना लाजमी है. क्या कुंभ अब केवल सत्ता और संपन्नता का खेल बनकर रह गया है?

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