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मराठा आरक्षण आंदोलन: सुप्रिया सुले से नारेबाजी के बीच सुषमा अंधारे सुषमा अंधारे ने कहा– गलत तरीके से बढ़ाई जा रही खबरें

Updated on: 31 August, 2025 08:20 PM IST | Mumbai
Ujwala Dharpawar | ujwala.dharpawar@mid-day.com

सुषमा ने यह भी कहा कि अजित पवार को राजनीति में तैयार करने में शरद पवार की भूमिका अहम रही, और अगर इसे मराठों को साधने का प्रयास समझा जाए, तो इसके पीछे राजनीतिक हित जुड़े हैं.

X/Pics, Sushma Andhare

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मुंबई के आज़ाद मैदान में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जारी भूख हड़ताल के दौरान राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से एक नया घटनाक्रम सामने आया है. मराठा कार्यकर्ता मनोज जारंगे पिछले दिनों से अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं. आंदोलन को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है, और सांसद सुप्रिया सुले भी इस मुद्दे को देखने और जारंगे से मुलाकात करने के लिए धरना स्थल पर पहुँची.

हालांकि, सुप्रिया सुले के धरना स्थल पर पहुंचने के बाद कुछ प्रदर्शनकारियों ने उनका विरोध किया और उनके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. इस घटना के बाद राजनीति और मीडिया में कई तरह की चर्चाएँ होने लगीं. इस मामले पर उद्धव गुट की नेता सुषमा अंधारे ने स्पष्ट किया कि सुप्रिया सुले से मुलाकात को लेकर खबरें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि यह कहना कि “पवार ने मराठों को गुमराह किया है,” पूरी तरह सत्य नहीं है.


 



 

सुषमा अंधारे ने बताया कि शरद पवार ने महाराष्ट्र में संस्थागत कामकाज स्थापित करने, सहकारी क्षेत्र के विस्तार और आर्थिक स्थायित्व लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके प्रयासों से महाराष्ट्र के कई जिलों में शैक्षणिक संस्थान, चीनी मिलें, तेल मिलें, दाल मिलें, कागज़ मिलें और डेयरी सुविधाएँ स्थापित हुईं. इसके अलावा, कई वर्तमान भाजपा नेता भी पवार के मार्गदर्शन में राजनीति में आए.

उन्होंने यह भी कहा कि अजित पवार को राजनीति में तैयार करने में शरद पवार की भूमिका अहम रही. अगर इसे मराठा समुदाय को साधने का प्रयास माना जाए, तो इसका तात्पर्य केवल राजनीतिक हितों से जुड़ा है. सुषमा अंधारे ने यह स्पष्ट किया कि पवार के समय में मराठा आरक्षण कभी प्राइम टाइम मुद्दा नहीं बना, और लगभग 1992 के बाद ही इस मांग ने गति पकड़ी.

आज की मांग यह है कि ओबीसी कोटे से मराठा समुदाय को आरक्षण मिले, जो तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 50% से अधिक न बढ़ाने का निर्णय दिया है. संसद ही इस फ़ैसले को बदलने की एकमात्र संस्था है, और वर्तमान में राज्य में सत्ता भाजपा के पास है. ऐसे में सुप्रिया सुले का धरना स्थल पर आना आंदोलन के लिए सकारात्मक संकेत माना जा रहा है.

सुषमा अंधारे ने यह भी कहा कि पिछले तीन दिनों में सरकार द्वारा आंदोलनकारियों के लिए पानी और बिजली बंद किए जाने के बावजूद मराठी समाज ने धैर्य नहीं खोया. अगर आंदोलनकारियों का गुस्सा अपने अपनों पर निकला, तो यह केवल परिस्थिति का परिणाम है. सुप्रिया सुले का धरना स्थल पर आना इस दृष्टि से स्वागत योग्य है, क्योंकि वह संसद में लगातार मराठा आरक्षण मुद्दा उठाती रही हैं.

इस घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया कि मराठा आरक्षण आंदोलन केवल सामाजिक मांग नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक जटिलताएँ और सत्ता संघर्ष भी गहराई से जुड़ा हुआ है. आंदोलनकारियों के सामने समर्थन देने वाले नेताओं की भूमिका इस समय बेहद महत्वपूर्ण हो गई है.

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