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एमसीडी में एल्डरमैन नामित करने पर बोला सुप्रीम कोर्ट- `दिल्ली के उपराज्यपाल को है अधिकार`

Updated on: 06 August, 2024 08:18 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ द्वारा दिया गया यह महत्वपूर्ण फैसला सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पोस्ट किया गया.

सुप्रीम कोर्ट/फाइल फोटो

सुप्रीम कोर्ट/फाइल फोटो

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के लिए दस एल्डरमैन चुनने का अधिकार है. यह फैसला दिल्ली नगर निगम अधिनियम पर आधारित है, जिसे संसद ने पारित किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ द्वारा दिया गया यह महत्वपूर्ण फैसला सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पोस्ट किया गया. फैसले में कहा गया है कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 3(3)(बी)(आई), जिसे संसद ने 1993 में संशोधित किया था, एलजी को नगर निगम प्रबंधन की विशिष्ट समझ रखने वाले दस व्यक्तियों को नामित करने का अधिकार देती है. 

रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने कहा कि एल्डरमैन नामित करने का कार्य संविधान के अनुच्छेद 239एए(4) के अंतर्गत नहीं आता है, जिसके तहत एलजी को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होता है. इसके बजाय, इस कार्य को अपवाद माना जाता है, जिससे एलजी को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति मिलती है. सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार के लिए हार है, जिसने तर्क दिया था कि एलजी को ऐसे नामांकन में निर्वाचित सरकार की सलाह का पालन करना चाहिए. हालांकि, न्यायालय ने जोर देकर कहा कि एलजी की नामांकन की शक्ति एक विधायी कर्तव्य है, न कि दिल्ली सरकार का प्रशासनिक कार्य.


न्यायालय ने कहा कि डीएमसी अधिनियम एलजी को इस शक्ति का उपयोग करने के लिए बाध्य करता है, जो अनुच्छेद 239एए(4) के तहत छूट को पूरा करता है जो एलजी को अपने विवेक से कार्य करने की अनुमति देता है. इस आधिकारिक घोषणा का अर्थ है कि नामित एल्डरमैन, जिसे स्थायी समितियों में नियुक्त किया जा सकता है, का एमसीडी के फंड वितरण पर बड़ा प्रभाव होगा.


न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने इस दलील को खारिज कर दिया कि एलजी का पद राज्यपाल के बराबर है, प्रत्येक पद के लिए अलग-अलग संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए. पीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि अधिनियम में `प्रशासक` शब्द 1991 से पहले के कानून का अवशेष है, जिसमें कहा गया है कि डीएमसी अधिनियम में 1993 के संशोधन ने स्पष्ट रूप से एलजी को नामांकन शक्तियां प्रदान की हैं.


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