प्रदर्शनकारियों का कहना था कि यह कानून बोधगया मंदिर का संचालन बौद्ध समुदाय से छीनकर अन्य प्रबंधन हाथों में दे रहा है, और इसके परिणामस्वरूप बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. (Pics/Dweep Bane)
प्रदर्शन में रिपब्लिकन सेना के प्रमुख आनंदराज अंबेडकर ने भी भाग लिया और अपने विचारों का समर्थन किया. उन्होंने बोधगया मंदिर के नियंत्रण पर बौद्धों का हक जताया और इस मुद्दे पर कानूनी सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया.
प्रदर्शनकारियों ने एक स्वर में यह मांग की कि बोधगया मंदिर अधिनियम को निरस्त किया जाए, ताकि मंदिर का प्रबंधन और नियंत्रण पूरी तरह से बौद्धों के हाथों में हो, जैसा कि ऐतिहासिक रूप से होना चाहिए.
बोधगया, जो कि बौद्ध धर्म के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है, में महाबोधि मंदिर की महत्ता से सभी भलीभांति परिचित हैं. इस मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है, और यह विश्वभर के बौद्धों के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में कार्य करता है.
हालांकि, बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 के तहत इसका संचालन बिहार राज्य सरकार द्वारा किया जाता है, जिससे बौद्ध समुदाय में असंतोष और निराशा है. इस अधिनियम के तहत, मंदिर का प्रबंधन और संचालन राज्य सरकार के नियंत्रण में है, और बौद्धों का मानना है कि यह उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है.
इस प्रदर्शन में भाग लेने वाले लोगों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों में इस मुद्दे को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. प्रदर्शनकारियों ने यह भी तर्क दिया कि बोधगया मंदिर के संचालन में बौद्धों को अपनी भागीदारी और नियंत्रण का पूरा अधिकार होना चाहिए. उनका मानना है कि बोधगया मंदिर का प्रबंधन बौद्धों के द्वारा ही किया जाना चाहिए, ताकि उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा हो सके.
मुंबई में हुआ यह विरोध प्रदर्शन इस बड़े आंदोलन का हिस्सा था, जो बोधगया मंदिर के नियंत्रण को लेकर देशभर में फैल चुका है. प्रदर्शनकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य सिर्फ बोधगया मंदिर अधिनियम को निरस्त करना नहीं है, बल्कि इस कानून के तहत किए गए निर्णयों को पुनः विचार करने की आवश्यकता है, ताकि बौद्ध समुदाय के धार्मिक अधिकारों का सम्मान किया जा सके.
प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की कि सरकार को तत्काल कानूनी सुधार लाने चाहिए, ताकि बौद्ध समुदाय को उनके अधिकार वापस मिल सकें और बोधगया मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से उनके हाथों में आ सके. यह आंदोलन बौद्ध समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो अपने अधिकारों की रक्षा और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं.
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