फुलेवाड़ा की यात्रा को केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक विचारधारा के प्रति निष्ठा के रूप में देखा गया.
सपकाल ने अपने पोस्ट में लिखा, "आज महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती है और इस पावन दिवस पर मैं कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ पुणे के ऐतिहासिक स्थान फुलेवाड़ा में जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की."
उन्होंने आगे कहा कि महात्मा फुले न केवल समाज सुधारक थे, बल्कि भारत की सामाजिक क्रांति के निर्माता भी थे.
उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, जातिवाद और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जिसका प्रभाव आज भी समाज में महसूस होता है.
सपकाल ने महात्मा फुले की शिक्षा, महिलाओं की समानता, जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष, और किसानों तथा मजदूरों के अधिकारों के लिए किए गए कार्यों को विशेष रूप से उल्लेखित किया.
उन्होंने कहा, "महात्मा फुले का हर विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है. उनका संघर्ष आज के समय में भी उतना ही महत्वपूर्ण है." उन्होंने फुलेवाड़ा को सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि क्रांति, समानता और जागरूकता का प्रतीक बताया.
हर्षवर्धन सपकाल ने बताया, "जब मैंने उस पवित्र भूमि को छुआ, तो मुझे एहसास हुआ कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, और इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हमारी है."
सपकाल ने महात्मा फुले को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस बात को भी महसूस किया कि फुले के विचारों और उनके संघर्षों को जारी रखना आज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.
उनकी श्रद्धांजलि यात्रा ने महात्मा फुले के योगदान को सम्मानित करने और उनकी विचारधारा को जीवित रखने के संकल्प को दोहराया.
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