Updated on: 15 July, 2025 08:34 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
लेकिन शेखर कपूर कोई साधारण फ़िल्मकार नहीं हैं—और ‘मासूम’ भी कोई आम फ़िल्म नहीं थी.
शेखर कपूर
बॉक्स ऑफिस की कमाई और ओपनिंग वीकेंड के शोर-शराबे से संचालित फ़िल्म उद्योग में, बहुत कम फ़िल्मकार ऐसे होते हैं जो अपनी पहली फ़िल्म के रिलीज़ पर फैले हुए सन्नाटे को याद करने का साहस करते हैं. लेकिन शेखर कपूर कोई साधारण फ़िल्मकार नहीं हैं—और ‘मासूम’ भी कोई आम फ़िल्म नहीं थी. एक भावुक और खुलासा करने वाले पोस्ट में, इस दूरदर्शी निर्देशक ने अपनी पहली फ़िल्म ‘मासूम’ की रिलीज़ सप्ताह की घबराहट भरी यादों को साझा किया—एक ऐसा सप्ताह जिसमें थिएटर की खाली कुर्सियाँ लगभग शुरुआत से पहले ही उसका अंत लिखने लगी थीं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
वे लिखते हैं, “लोग उसे ‘आर्टिकल फ़िल्म’ कहते थे” एक ऐसी संज्ञा जिसे ब्लैक मार्केट में काम करने वाले लोगों ने लगभग आरोप लगाने के अंदाज़ में इस्तेमाल किया. इस शब्द का आशय था ‘कलात्मक, लेकिन घाटे वाली फ़िल्म’. यह ठप्पा बेहद भारी साबित हुआ. “कोई देखने नहीं आया,” वे स्वीकारते हैं. रिलीज़ वाले शुक्रवार और उसके बाद के दिनों में थिएटर पूरी तरह खाली थे. उन्होंने आगे लिखा “मेरा फ़िल्ममेकर के रूप में करियर वहीं खत्म हो गया था... जो कि असल में शुरू भी नहीं हुआ था.”
हफ़्ते के बीच में ही निर्णायक मोड़ आ गया. बुधवार तक, डिस्ट्रीब्यूटर ने फ़िल्म को सिनेमाघरों से हटाना शुरू कर दिया था, और उसकी जगह कुछ ज़्यादा व्यावसायिक रूप से कमाऊ फ़िल्म लाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन फिर आया गुरुवार. कुछ बदल गया. “एक फ़ोन आया कि लोग आना शुरू हो गए हैं,” शेखर कपूर लिखते हैं. शुक्रवार तक थिएटर भर चुके थे. शनिवार को टिकट ब्लैक में बिकने लगे—वही दर्शक जो पहले फ़िल्म को ठुकरा चुके थे, अब अंदर जाने के लिए बेताब थे. जिस फ़िल्म को कभी ‘बेचने लायक नहीं’ कहा गया था, वो अचानक हिट बन गई. “...और ‘मासूम’ को हिट घोषित कर दिया गया,” वे लिखते हैं—सालों बाद भी जैसे यक़ीन नहीं होता.
लेकिन यह सिर्फ़ वापसी या देर से मिली सफलता की कहानी नहीं है. यह किस्मत और नियति पर एक गहरा विचार है. कपूर बार-बार एक सवाल की ओर लौटते हैं—आख़िर गुरुवार को ऐसा क्या हुआ? वो रहस्यमयी क्षण, वो चिंगारी जिसने दर्शकों में रुचि जगा दी, अब तक एक पहेली है. “क्या मेरी (या फ़िल्म की) क़िस्मत रातों-रात बदल गई?” वे सोचते हैं.
अब जब वे ‘मासूम: द नेक्स्ट जनरेशन’ की तैयारी कर रहे हैं, तब भी उस अनिश्चित सप्ताह की यादें ज़हन में ताज़ा हैं. और वो एक शब्द—‘आर्टिकल फ़िल्म’—जो कभी उनकी राह की सबसे बड़ी रुकावट था, अब शायद यही दर्शाता है कि ‘मासूम’ क्यों आज भी याद की जाती है—क्योंकि उसमें थी एक सादगी और भावनात्मक सच्चाई, जिसने हर ट्रेंड, हर बाजार की समझ और हर अपेक्षा को चुनौती दी.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT