Updated on: 15 July, 2025 06:50 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
किशोर न्याय बोर्ड के इस बयान ने निश्चित रूप से इस मामले में स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है.
दुर्घटनाग्रस्त पोर्श का. तस्वीर/फ़ाइल तस्वीर
पुणे के बहुचर्चित पोर्श मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड ने कहा कि पिछले साल पुणे में नशे की हालत में पोर्श कार चलाने और दो लोगों को कुचलने के आरोपी 17 वर्षीय लड़के पर किशोर की तरह मुकदमा चलाया जाएगा. किशोर न्याय बोर्ड के इस बयान ने निश्चित रूप से इस मामले में स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है.
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रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय सुर्खियों में आई यह घटना 19 मई, 2024 को कल्याणी नगर इलाके में हुई थी. पुणे में हुई कार दुर्घटना में मोटरसाइकिल सवार आईटी पेशेवर अनीश अवधिया और उनके दोस्त अश्विनी कोस्टा की मौत हो गई थी. पुणे पुलिस ने पिछले साल यह कहते हुए आरोपी पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने की मांग की थी कि उसने एक "जघन्य" कृत्य किया है, क्योंकि न केवल दो लोगों को कुचलकर मार डाला गया था, बल्कि सबूतों से छेड़छाड़ करने की भी कोशिश की गई थी. हालांकि बचाव पक्ष के वकील के अनुसार, पुणे पुलिस का बयान सुनने के बाद, किशोर न्याय बोर्ड ने मंगलवार को आरोपी लड़के को वयस्क मानने की उनकी याचिका खारिज कर दी.
पुलिस ने दुर्घटना के कुछ ही घंटों बाद, पुणे के पोर्श कार दुर्घटना मामले में नाबालिग आरोपी के साथ मौजूद नाबालिगों के रक्त के नमूनों की कथित अदला-बदली के सिलसिले में आरोपी और दो अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया. रिपोर्ट के अनुसार पोर्श कार दुर्घटना के मुख्य आरोपी की माँ कथित रक्त के नमूनों की अदला-बदली के मामले में गिरफ्तार किए गए दस आरोपियों में से पहली आरोपी थी, जिन्हें बाद में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. हालांकि, आरोपी किशोर को दुर्घटना के कुछ ही घंटों बाद 19 मई, 2024 को ज़मानत मिल गई.
ज़मानत की हल्की शर्तों, जिसमें नाबालिग से सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने को कहा गया था, ने देश भर में विवाद खड़ा कर दिया, जिसके बाद उसे तीन दिन बाद पुणे शहर के एक सुधार गृह में भेज दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक इसके अलावा, बाद में 25 जून, 2024 को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि लड़के को तुरंत रिहा किया जाए, यह कहते हुए कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उसे पर्यवेक्षण गृह में भेजने के आदेश अवैध थे और किशोरों से संबंधित कानून को पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए.
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