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कार्तिक पूर्णिमा: दीपदान का है विशेष महत्व, जानिए क्या है पूजन का सही मुहूर्त

Updated on: 27 November, 2023 07:53 AM IST | mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

कार्तिक पूर्णिमा को कतकी या देव दिवाली भी कहते हैं. इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है. यह त्योहार वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन काशी में इस त्योहार की रौनक देखते ही बनती है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा इस साल 27 नवंबर को है.

प्रतिकात्मक तस्वीर

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कार्तिक पूर्णिमा को कतकी या देव दिवाली भी कहते हैं. इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है. यह त्योहार वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन काशी में इस त्योहार की रौनक देखते ही बनती है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा इस साल 27 नवंबर को है. इस दिन स्‍नान और दान पुण्‍य करने का विशेष महत्‍व होता है. मान्‍यता है कि इस दिन दीपदान करने से कभी न समाप्‍त होने वाला पुण्‍य मिलता है और सभी प्रकार के पापों का अंत होता है.

कार्तिक पूर्णिमा पर नदी के किनारे दीप दान करने से विशेष लाभ मिलता है लेकिन ऐसा न हो पाने पर घर में तुलसी के पेड़ पर, मुख्‍य द्वार के दोनों तरफ, ईशान कोण में और घर के पूजा स्‍थान में दीपक जलाने से पुण्य मिलता है. इसके अलावा घर के पास किसी मंदिर में जाकर दीपक जलाएं. ऐसा करने से कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने का पुण्‍य प्राप्‍त होता है. पूर्णिमा पर पूजापाठ और दान पुण्‍य करने से आपको पितरों का आशीर्वाद मिलता है.


हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का खास महत्व होता है. हिन्दू पंचाग में साल में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं. इनमें से कार्तिक पूर्णिमा पर पूजन और दीपदान का विशेष महत्व है. यह साल की सबसे बड़ी पूर्णिमा होती है, इस दिन अलग शहर और राज्य के अनुसार पूजन होता है. कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त 3 बजकर 52 मिनट से शुरू होगा, जो अगले दिन 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगा. उदयातिथि के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर को मनाई जाएगी


मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने असुरराज त्रिपुरासुर का वध किया था. इसलिए इस दिन को त्रिपुरपूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन असुरों से देवताओं को मुक्ति मिली थी इसलिए उन्होंने दिए जलाकर दिपावली मनाई थी. इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर गुरुओं के देव गुरुनानक जी का जन्म हुआ था, इसदिन गुरुनानक जयंती भी मनाई जाती है.

 


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