विरोध प्रदर्शन के दौरान बड़ी संख्या में जुटी महिलाओं ने नारों के साथ और हाथों में तख्तियां लेकर सरकार को घेरा और पूछा – आखिर हमारी जिंदगी से जुड़े सवाल कब सुने जाएंगे?
प्रदर्शन का केंद्र बिंदु थे कई ज्वलंत मुद्दे—लड़की बहिन योजना का रुकना, लगातार बढ़ती गैस सिलेंडर की कीमतें, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का महीनों से बकाया वेतन, महिलाओं के लिए खराब स्वास्थ्य सेवाएं, और संजय गांधी निराधार योजना की अचानक बंदी.
इन मुद्दों पर सरकार की चुप्पी और लापरवाही को लेकर महिलाओं ने कड़ी नाराजगी जताई.
शिवसेना नेताओं और महिला पदाधिकारियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि फडणवीस सरकार ने "प्यारी बहनों" के नाम पर वोट तो ले लिए, लेकिन अब वही बहनें खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं.
महिलाएं सिर्फ घरेलू कामकाज तक सीमित नहीं हैं, वे अपने अधिकारों को लेकर सजग भी हैं और अब संगठित होकर सड़कों पर उतरने को तैयार हैं.
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे विधायक अनिल परब, अजय चौधरी, अमोल कीर्तिकर, किशोरी पेडणेकर, सुषमा अंधारे, वरुण सरदेसाई और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने सरकार को चेताया कि अब अगर महिला सुरक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों की अनदेखी की गई तो आंदोलन और तेज़ होगा.
जिला प्रशासन को सौंपे गए ज्ञापन में मांग की गई कि महिला-केंद्रित योजनाओं को फिर से शुरू किया जाए, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए और जिन योजनाओं से गरीब महिलाओं को राहत मिलती थी, उन्हें तत्काल बहाल किया जाए.
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