Updated on: 23 June, 2025 01:10 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने आषाढ़ी वारी में शामिल होने का संकल्प लिया है. वह 24 जून को दिंडी क्रमांक 282 में पुणे-सोलापुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर यावत गांव से पैदल यात्रा शुरू करेंगे.
X/Pics, Harshwardhan Sapkal
महाराष्ट्र की आषाढ़ी वारी एक ऐतिहासिक धार्मिक परंपरा है, जो हर साल लाखों भक्तों को पंढरपुर की ओर पैदल यात्रा पर चलते है. इस यात्रा में शामिल होने के लिए महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से वारकरी और विट्ठल भक्त, श्रद्धा और भक्ति से ओत-प्रोत होकर पंढरपुर की ओर बढ़ते हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है, जो भारतीय समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक बन चुकी है.
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इस बार, महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भी आषाढ़ी वारी में शामिल होने का संकल्प लिया है. सपकाल ने 24 जून को दिंडी क्रमांक 282 में शामिल होकर पैदल यात्रा करने का निर्णय लिया है. वह सुबह 7 बजे पुणे-सोलापुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर यावत गांव से यात्रा की शुरुआत करेंगे और वरवंड गांव तक पैदल चलेंगे.
पंढरपुर वारी की परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. यह यात्रा जाति, धर्म और संप्रदाय से परे होकर विठ्ठल भक्ति का संदेश देती है. संत ज्ञानेश्वर महाराज, संत तुकाराम महाराज, संत एकनाथ, संत नामदेव और अन्य महान संतों ने इस यात्रा को अपने भक्ति मार्ग का हिस्सा बनाया और इसे महाराष्ट्र की आध्यात्मिक धरोहर के रूप में स्थापित किया. इन संतों के योगदान से ही पंढरपुर वारी को एक विशेष धार्मिक पहचान मिली है.
सावला विठु को आम भक्तों का मित्र माना जाता है और इस यात्रा के माध्यम से भक्त अपने आध्यात्मिक जीवन को समर्पित करते हैं. यह यात्रा न केवल भक्तों के लिए एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह समाज में सद्भावना और एकता का संदेश भी देती है. हर साल लाखों लोग इस वारी में शामिल होते हैं और इस यात्रा के माध्यम से अपने दिलों में भक्ति और प्रेम की भावना को और मजबूत करते हैं.
हर्षवर्धन सपकाल ने इस वारी की महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा कि हमें इस परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा कि हमें महाराष्ट्र की इस गौरवशाली परंपरा को लेकर गर्व होना चाहिए और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना चाहिए. यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है.
आषाढ़ी वारी की परंपरा को समझते हुए हमें यह भी सीखने की जरूरत है कि एकता, भाईचारे और समाज में प्रेम के महत्व को समझें और इस परंपरा का हिस्सा बनें.
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