Updated on: 30 August, 2025 04:22 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया.
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह अन्य नेताओं के साथ. तस्वीर/पीटीआई
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर संसद और राज्य विधानमंडलों की समितियों के अध्यक्षों का राष्ट्रीय सम्मेलन शुक्रवार को ओडिशा के भुवनेश्वर में शुरू हुआ. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया. इस अवसर पर, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने लोकतंत्र में संसद की प्रमुखता पर प्रकाश डालते हुए कहा, "संसद और उसकी समितियाँ संविधान की प्रस्तावना में निहित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के आदर्शों को साकार करने के लिए एक सशक्त मंच के रूप में कार्य करती हैं."
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रिपोर्ट के मुताबिक उपसभापति ने आगे कहा कि 1968 में गठित अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर संसदीय समिति, राष्ट्रीय आयोगों की रिपोर्टों का अध्ययन करती है और सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जाँच करती है. हरिवंश ने भारत की आज़ादी को सिर्फ़ एक राजनीतिक परिवर्तन नहीं बताते हुए कहा, "आज़ादी एक सामाजिक जागृति भी थी, जो समाज सुधारकों की लंबी परंपरा को याद दिलाती है जिन्होंने रूढ़िवादिता को चुनौती दी और प्रगतिशील सामाजिक विचारों का मार्ग प्रशस्त किया."
भारत की आर्थिक प्रगति पर प्रकाश डालते हुए, हरिवंश ने कहा, "भारत `नाज़ुक पाँच` (2013) से उठकर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (2025) बन गया है. विश्व बैंक के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी 2011-12 के 16 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 2.3 प्रतिशत हो गई है, जबकि बहुआयामी गरीबी 54 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत हो गई है. समृद्धि को लोगों के साथ साझा करने के लिए, राष्ट्र को मज़बूत और समृद्ध होना चाहिए. खोखले नारे सिर्फ़ गरीबी फैलाते हैं. समृद्धि ही समान अवसर पैदा करती है, अभाव नहीं." रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्रता आंदोलन की तरह जातिवाद के उन्मूलन के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान का आह्वान करते हुए, उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "आरक्षण तो ज़रूरी है ही, साथ ही समतावादी समाज के निर्माण के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव भी उतना ही ज़रूरी है. इस संबंध में जन जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है."
अपने संबोधन की शुरुआत में, उपसभापति ने अमरको-सिमको आंदोलन (ओडिशा, 1939) के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिसे अक्सर "ओडिशा का जलियाँवाला बाग" कहा जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने यह भी कहा कि ओडिशा ने भारत को अपनी पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू दी हैं. राष्ट्रपति की प्रशंसा करते हुए, उपसभापति ने कहा, "वह सादगी और संघर्ष की प्रतिमूर्ति हैं. ओडिशा आदिवासी बहुल राज्यों में समावेशी विकास का एक अनुकरणीय मॉडल है."
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