Updated on: 15 May, 2025 08:39 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
भारत में तुर्की कंपनियों की भूमिका की पुनः जांच की जा रही है. यह कदम तुर्की द्वारा कश्मीर पर टिप्पणियों तथा पाकिस्तान के साथ निकटता के मद्देनजर उठाया गया है.
नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
यह स्पष्ट नहीं है कि समीक्षा के बाद कितने अनुबंध रद्द या संशोधित किये जायेंगे. तुर्की के साथ संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कश्मीर पर अपनी स्थिति को संतुलित रखता है या नहीं. भारत और तुर्की के बीच वर्षों से चले आ रहे व्यापारिक और सामरिक संबंध अब नई दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं. `ऑपरेशन सिंदूर` के बाद केंद्र सरकार ने तुर्की की कंपनियों से जुड़े सभी ठेकों और परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी है. भारत में निर्माण, विनिर्माण, विमानन, मेट्रो रेल और आईटी जैसे क्षेत्रों में सक्रिय तुर्की कंपनियों की भूमिका की पुनः जांच की जा रही है. यह कदम तुर्की द्वारा कश्मीर मुद्दे पर बार-बार की गई टिप्पणियों तथा पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती निकटता के मद्देनजर उठाया गया है.
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इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आईबीईएफ) की फरवरी 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार 10.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. इस प्रकार, अप्रैल 2000 से सितम्बर 2024 तक तुर्की से भारत में कुल 240.18 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एफडीआई आया है, जिससे तुर्की एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 45वें स्थान पर है.
ये निवेश गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा दिल्ली जैसे राज्यों तक फैले हुए हैं. मेट्रो रेल, सुरंग निर्माण और हवाई अड्डा सेवाओं से लेकर शिक्षा, मीडिया और सांस्कृतिक सहयोग तक कई क्षेत्रों में कई समझौतों और साझेदारियों पर हस्ताक्षर किए गए. उदाहरण के लिए, 2020 में अटल सुरंग के इलेक्ट्रोमैकेनिकल हिस्से का काम तुर्की की कंपनी को दिया गया, जबकि 2024 में रेलवे विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने मेट्रो परियोजना के लिए तुर्की की कंपनी के साथ समझौता किया.
लेकिन `ऑपरेशन सिंदूर` और उसके बाद की घटनाओं ने भारत सरकार को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है. तुर्की ने न केवल पाकिस्तान को सैन्य ड्रोन उपलब्ध कराए, बल्कि यह भी पता चला कि तुर्की के संचालकों ने पाकिस्तान को उसके सैन्य अभियानों में सहायता भी की. यही मुख्य कारण है कि अब तुर्की कंपनियों से जुड़ी सभी परियोजनाओं की गहन समीक्षा की जा रही है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "सरकार तुर्की की सभी परियोजनाओं और अनुबंधों की फिर से जांच कर रही है, भले ही उनकी अवधि पूरी हो गई हो. हर सौदे और परियोजना का पूरा डेटा एकत्र किया जा रहा है."
सरकार के इस कदम के पीछे मुख्य कारणों में से एक तुर्की का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर लगातार बयान देना और पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती निकटता है. यद्यपि अभी तक कोई भी परियोजना औपचारिक रूप से रद्द नहीं की गई है, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं - भारत अपनी विदेश नीति में `आवश्यक बदलाव` की ओर बढ़ रहा है. वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने कहा, "कुछ दीर्घकालिक समझौते तत्काल प्रभाव से प्रभावित नहीं हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति और तुर्की का रवैया भविष्य के निवेश और साझेदारी को प्रभावित कर सकता है."
भारत में तुर्की की उपस्थिति केवल संख्या तक सीमित नहीं हो सकती. तुर्की की कंपनियां लखनऊ, पुणे और मुंबई जैसे शहरों में मेट्रो परियोजनाओं में साझेदार हैं. संयुक्त उद्यम के तहत गुजरात में एक विनिर्माण इकाई भी स्थापित की गई है. इसके अतिरिक्त, एक प्रमुख तुर्की एयरलाइन भारतीय हवाई अड्डों को सेवाएं प्रदान कर रही है.
तुर्की की कंपनी सलेबी एविएशन भारत के आठ प्रमुख हवाई अड्डों पर कार्गो हैंडलिंग जैसे उच्च सुरक्षा कार्यों में शामिल है. इन हवाई अड्डों में दिल्ली, मुंबई और चेन्नई शामिल हैं. इस संदर्भ में, पाकिस्तानी सैन्य अभियानों में तुर्की संचालकों की संलिप्तता के खुलासे ने भारत में सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ा दी हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इन संवेदनशील क्षेत्रों में तुर्की की संलिप्तता को देखते हुए भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन सौदों की गहन जांच कर सकती है.
2017 में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच मीडिया, शिक्षा और राजनयिक प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे. लेकिन आठ साल बाद अब ये समझौते केवल कागजों तक ही सीमित नजर आ रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की वर्तमान रणनीति कम शोर मचाने तथा अधिक सशक्त संदेश भेजने की है. इनमें से कोई भी परियोजना अभी तक आधिकारिक रूप से पूरी नहीं हुई है, लेकिन आंतरिक स्तर पर ठोस बदलावों की तैयारियां चल रही हैं. भारत अब अपने सामरिक हितों को सर्वोपरि रखते हुए उन व्यापारिक रिश्तों पर पुनर्विचार कर रहा है जो देश की विदेश नीति और सुरक्षा नीतियों के अनुरूप नहीं हैं.
अखिल भारतीय सिने श्रमिक संघ (एआईसीडब्ल्यूए) ने फिल्म शूटिंग और सांस्कृतिक सहयोग के लिए तुर्की का "पूर्ण बहिष्कार" करने की घोषणा की है. एआईसीडब्ल्यूए ने एक्स पर कहा, "तुर्की में तत्काल प्रभाव से किसी भी बॉलीवुड या किसी भी भारतीय फिल्म परियोजना की शूटिंग नहीं की जाएगी. किसी भी भारतीय निर्माता, प्रोडक्शन हाउस, निर्देशक या फाइनेंसर को तुर्की में कोई भी फिल्म, टेलीविजन या डिजिटल सामग्री परियोजना ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी." तुर्की के कलाकारों और अन्य रचनात्मक पेशेवरों के साथ किसी भी तरह का सहयोग समाप्त करने का भी अनुरोध किया गया.
तुर्की उत्पादों का व्यापार करने वाले भारतीय व्यापारी भी तुर्की उत्पादों को दुकानों से दूर रखने के आह्वान में शामिल हो गए हैं. एशिया के सबसे बड़े संगमरमर निर्यात केंद्र उदयपुर के मार्बल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ने तुर्की से संगमरमर के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जो भारत की आपूर्ति का 70 फीसदी हिस्सा है.इसी तरह, पुणे के फल व्यापारियों ने तुर्की से सेब आयात करना बंद कर दिया है और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और ईरान से सेब आयात करना शुरू कर दिया है. यदि भारत तुर्की के साथ व्यापार और वाणिज्य का बहिष्कार जारी रखता है, तो इससे तुर्की के लिए समस्याएँ पैदा हो सकती हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 तक भारत और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 10.43 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें भारत 6.65 बिलियन डॉलर मूल्य के सामान का निर्यात करके और बदले में 3.78 बिलियन डॉलर का आयात करके व्यापार अधिशेष का आनंद उठाएगा. भारत द्वारा तुर्की को किए जाने वाले प्रमुख निर्यातों में खनिज ईंधन, विद्युत मशीनरी, ऑटोमोटिव घटक, कार्बनिक रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र तथा लोहा एवं इस्पात शामिल हैं. भारत तुर्की से संगमरमर, सोना, सेब, खनिज तेल, रसायन तथा लोहा एवं इस्पात का आयात करता है.
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