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पाकिस्तान की तीर्थयात्रा पर से लौटे जैन मुनि, कहा- `हमें पैदल चलना चाहिए....`

Updated on: 27 August, 2025 11:30 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

आचार्य ने बताया कि दो साल पहले उन्हें लाहौर के गुजरांवाला स्थित सरकारी संग्रहालय में गुरुदेव विजयानंदसूरी महाराज की चरण पादुका के दर्शन करने का अवसर मिला था.

आचार्य धर्मधुरंधसूरीश्वरजी महाराज (फोटो: सोशल मीडिया)

आचार्य धर्मधुरंधसूरीश्वरजी महाराज (फोटो: सोशल मीडिया)

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, वल्लभसूरी संप्रदाय के वर्तमान आचार्य धर्मधुरंधर सूरीश्वरजी महाराज पाकिस्तान की तीर्थयात्रा पर जाने वाले पहले जैन मुनि बने. पाकिस्तान की तीर्थयात्रा पर जाने वाले पहले जैन मुनि हाल ही में वडोदरा में चातुर्मास करने आए हैं. आचार्य ने बताया कि दो साल पहले उन्हें लाहौर के गुजरांवाला स्थित सरकारी संग्रहालय में रखे जैन गच्छ के गुरुदेव विजयानंदसूरी महाराज (आत्मारामजी महाराज) की चरण पादुका के दर्शन करने का अवसर मिला था. गौरतलब है कि उन्होंने पाकिस्तान में अपने बुरे अनुभव भी साझा किए. उन्होंने बताया कि वहां तीर्थयात्रा के दौरान उन्हें पैदल चलने की इजाजत नहीं थी. अधिकारी बार-बार उन्हें गाड़ी में बैठने के लिए कहते थे, जिसके कारण उन्हें कठोर शब्द बोलने पड़ते थे. इसके साथ ही, उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई क्योंकि उन्हें लव-कुश के घर जाने की अनुमति नहीं थी.

आचार्य धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी महाराज ने दिव्य भास्कर से खास बातचीत की. आज़ादी के 75 साल बाद भी किसी जैन मुनि ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया है. भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने वल्लभसूरि संप्रदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी महाराज, मुनिराज ऋषभचंद्रविजय धर्म कीर्तिविजय, महाभद्रविजय महाराज और उनके साथ 18 शिष्यों को पाकिस्तान जाने की अनुमति दी है. लगभग दो साल पहले वे पैदल यात्रा करके लाहौर पहुँचे थे.


उन्होंने कहा, "पाकिस्तान में मेरे अच्छे और बुरे दोनों तरह के अनुभव रहे. पाकिस्तान जाने का अनुभव बेहद रोमांचक रहा. मैं पाकिस्तान जाकर बहुत खुश था. पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करने के बाद मुझे लगा कि यह देश हमारे जैसा ही है, इसलिए मुझे बहुत खुशी हुई. जब कोई वहाँ जाता है, तो सरकार द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार जाता है. हम सरकार से बात करके गए थे. उस समय वहाँ का माहौल भी ऐसा ही था और उस देश में हिंदुओं के साथ जिस तरह का व्यवहार होता है, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, हालाँकि मुझे ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ." महाराज ने कहा,  "जब हम एक जगह से दूसरी जगह जाते थे, तो पुलिसवाले हमें अपनी गाड़ी में बैठने के लिए ज़िद करते थे. वे हमें पैदल न चलने के लिए कहते थे. मैंने उनसे कहा कि हम जहाँ भी जाएँ, पैदल ही जाएँ. यही हमारा नियम है. हम भारत में बैठे आपके अधिकारियों को बताकर यहाँ आए हैं. मैं पाकिस्तान के गुजरांवाला की धरती पर इतना खुश था कि मानो मेरे गुरु ने मुझे वहाँ होने का एहसास दिलाया हो. मेरे लिए इससे बेहतर कोई अनुभव नहीं है".


उन्होंने कहा, "पाकिस्तान में हिंदू और सिख तो हैं, लेकिन वहाँ कोई जैन परिवार नहीं रहता. हम जिस जगह रुके थे, वहाँ से पुलिस की अनुमति और सुरक्षा के बिना बाहर नहीं जा सकते, इसलिए मुझे उनके बारे में नहीं पता. लाहौर में भगवान राम के पुत्रों लव और कुश का एक घर है और मैं सचमुच उस घर के अंदर जाकर उसे देखना चाहता था. मैं बाहर गया और घर को बाहर से देखा, हमने घर खोलने का अनुरोध किया, लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी."

वडोदरा के जानी शहर में जन्मे वल्लभसूरि महाराज 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब पाकिस्तान के गुजरांवाला में चातुर्मास कर रहे थे. उस समय देश के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनसे अनुरोध किया कि वे सभी को भारत ले आएँ क्योंकि वहाँ का माहौल ठीक नहीं था. हालाँकि, महाराज ने कहा, "पाकिस्तान में भी बहुत से जैन और हिंदू हैं, उनका क्या होगा? अगर आप मुझे यहाँ से ले जाना चाहते हैं, तो मैं अकेला नहीं आऊँगा. सभी जैन और हिंदू मेरे साथ आएँगे, अगर आप उनकी व्यवस्था करें, तो मैं आऊँगा." तब सरदार पटेल ने सेना भेजी और महाराज अपने शिष्यों और श्राविकाओं के साथ भारत लौट आए.


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