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मुंबई-अहमदाबाद हाईवे बना मौत का जाल: 238 हादसों में 131 लोगों की जान गई, यात्रियों और ट्रक चालकों में दहशत

Updated on: 26 September, 2025 10:22 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

मुंबई-अहमदाबाद राजमार्ग (NH-48) पर गड्ढे, टूटी सड़कें और अधूरी मरम्मत के कारण लगातार दुर्घटनाएँ हो रही हैं. इस साल 238 हादसों में 131 लोगों की मौत हो चुकी है, जिससे यात्रियों और स्थानीय लोगों में डर का माहौल बन गया है.

Pics/By Special Arrangement

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मुंबई-अहमदाबाद राजमार्ग (NH-48) यात्रियों, ट्रक चालकों और स्थानीय लोगों के लिए गड्ढों, टूटी हुई सड़कों, खराब रोशनी और अधूरी मरम्मत के कारण लगातार भय का पर्याय बन गया है. तलासरी-दहिसर खंड पर, इस वर्ष 238 दुर्घटनाओं में 131 लोगों की जान चली गई है, जो इस बात की गंभीर चेतावनी है कि छोटे-छोटे उपाय और अस्थायी यातायात प्रतिबंध सड़क की गहरी, संरचनात्मक कमियों को दूर नहीं कर सकते.

स्थानीय लोगों का कहना है कि बड़े पैमाने पर सफेदी परियोजना के बावजूद, राजमार्ग की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. अखिल भारतीय वाहन मालिक एवं चालक महासंघ के प्रवक्ता हरबंस सिंह नानाडे ने कहा, "तथाकथित मरम्मत से कोई फर्क नहीं पड़ा है - घातक दुर्घटनाएँ वास्तव में बढ़ गई हैं और यातायात का प्रवाह बिगड़ गया है. ठेकेदारों पर कोई वास्तविक दायित्व नहीं है और NHAI (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) सड़क की मरम्मत करने में विफल रहा है. एम्बुलेंस, स्कूली बच्चे और कर्मचारी हर दिन परेशान होते रहते हैं."


हालांकि, एनएचएआई का कहना है कि काम लगातार आगे बढ़ रहा है. एनएचएआई के परियोजना निदेशक सुहास चिटनिस ने कहा, "अब तक 99 प्रतिशत सड़क की सफेदी का काम पूरा हो चुका है." उन्होंने इस दावे का खंडन किया कि मरम्मत से सड़क सुरक्षा पर असर पड़ा है. उन्होंने आगे कहा, "काम और यातायात दोनों साथ-साथ चल रहे थे. हालाँकि गुणवत्ता बेहतर हो सकती थी, लेकिन कुल मिलाकर सड़क की हालत खराब नहीं है. कुछ गड्ढे हैं और राजमार्ग के तीन आउटलेट खस्ताहाल हैं, जिससे वैकल्पिक मार्ग न होने के कारण यातायात इसी रास्ते पर आ रहा है."


संरचनात्मक खामियाँ

हालाँकि अधिकारियों ने ठाणे और भिवंडी के बीच भारी वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया है, आलोचकों का तर्क है कि ट्रकों की आवाजाही सीमित करना एक मरहम-पट्टी जैसा उपाय है. "ट्रकों के लिए कोई टर्मिनल नहीं हैं, जिससे उन्हें सड़क पर रुकना पड़ता है या शहर की गलियों में घुसना पड़ता है. गलत दिशा में गाड़ी चलाना आम बात है, लेन अनुशासन का अभाव है, यातायात प्रतिबंधों का पालन नहीं किया जाता है, और ड्राइवरों को अक्सर उचित जानकारी का अभाव होता है. सिर्फ़ भारी वाहनों की आलोचना करने से कुछ नहीं होगा - वे व्यवस्था का हिस्सा हैं, और ज़रूरी सामान लोगों तक पहुँचना ज़रूरी है. सब कुछ समन्वय से काम करना चाहिए, वरना समस्याएँ बनी रहेंगी," डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ज़िम्मेदार कौन की श्रद्धा राय ने कहा, जो एनएच-48 पर जवाबदेही की माँग कर रहा है.


"गुजरात से सीमा तक, गाड़ी चलाना आसान है - लेकिन जैसे ही हम महाराष्ट्र में प्रवेश करते हैं, यह नरक बन जाता है. हमें शाम 5 बजे से रात 10 बजे के बीच सबसे ज़्यादा परेशानी होती है," एक ट्रक ड्राइवर ने कहा. हेवी कंटेनर एसोसिएशन के सदस्य संजय धावले ने कहा, "आरोप-प्रत्यारोप का खेल बंद होना चाहिए. असली समस्या सड़क ही है, और हर साल यही कहानी दोहराई जाती है. हाईवे पर अभी भी कई गड्ढे हैं, बीच वाली लेन में भी, और कुछ इलाकों में तो स्ट्रीट लाइटें भी काम नहीं करतीं. सिर्फ़ ट्रक ही नहीं, छोटी कारें और बाइक भी मुश्किल में हैं. अस्थायी मरम्मत से कुछ नहीं होता. भारी वाहनों का यात्रा समय तीन गुना बढ़ गया है. हम टैक्स तो देते हैं, लेकिन फिर भी बुनियादी सुविधाओं और पार्किंग की कमी है. कई ड्राइवर हताश होकर राज्य छोड़ चुके हैं. हमें एक समर्पित लेन चाहिए, अधिमानतः दाईं ओर, चौबीसों घंटे, ताकि हम सम्मान के साथ काम कर सकें."

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