Updated on: 12 January, 2024 12:27 PM IST | mumbai
Tanu Chaturvedi
राष्ट्रीय युवा दिवस: इस दिन को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मनाया जाता है. यह दिन स्वामी जी को समर्पित है क्योंकि उनकी ही तरह युवाओं को कड़ी मेहनत करनी चाहिए और देश के समग्र विकास में योगदान देना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के ज्ञान और धर्मार्थ को कौन नहीं जानता.
स्वामी विवेकानंद
राष्ट्रीय युवा दिवस: इस दिन को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मनाया जाता है. यह दिन स्वामी जी को समर्पित है क्योंकि उनकी ही तरह युवाओं को कड़ी मेहनत करनी चाहिए और देश के समग्र विकास में योगदान देना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के ज्ञान और धर्मार्थ को कौन नहीं जानता. आज भी कई लोग उनकी सीखों को जीवन का सार बनाकर जीते हैं. स्वामी विवेकानंद को यह नाम यूं ही नहीं मिला है तो आइए आपको उनके खास दिन पर बताते हैं कि कैसे स्वामी जी को अपना नाम मिला. साथ ही कैसे उनके प्यार में एक अमेरिकी महिला ने विवाह का प्रस्ताव डे डाला था.
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कुछ ऐसा था स्वामी जी का बचपन और परिवार
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था. नरेंद्र का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में हुआ था. परिवार मे सभी ज्ञान के क्षेत्र में ही काम कर रहे थे. उनके पिता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और उनके दादा संस्कृत औऱ फारसी भाषाओं के जानकार थे. उनकी मां भी धार्मिक विचारों की महिला थीं.
नरेंद्र दत्त बचपन में बड़े ही शरारती थी. उन्होंने 25 वर्ष की आयु में परिवार छोड़ा तो उनको भी साहित्य में रुचि थी. वह भारतीय धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के साथ ही बंगाली साहित्य और यूरोपिय साहित्य भी पढ़ना पसंद करते थे. शुरू में नरेंद्र मूर्ति उपासना से दूर ही रहते थे लेकिन धीरे-धीरे मां काली के प्रति उनकी उपासना बढ़ने लगी. नरेंद्र नाथ दत्त की मुलाकात एक काली मंदिर में ही स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई थी.
रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में बने मां काली के उपासक
वह मां काली के बहुत बड़े उपासक थे. स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को मां काली की उपासना और ध्यान में लगने को कहा. स्वामी विवेकानंद को अपने गुरु से ज्ञान तो प्राप्त हुआ ही साथ ही उन्हें मां काली के साक्षात दर्शन भी हुए थे. कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद एक बार रात में मां काली के मंदिर पहुंचे तो उन्हें स्वयं मां काली ने दर्शन दिए थे. उनकी आँखों तब खुशी के आंसू आए और वह फिर मंदिर से बाहर चले गए थे.
शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन रहा था खास
भारतीयता को, ज्ञान को और आध्यात्म को दर्शाने वाले स्वामी विवेकानंद ने विदेश दौरे भी किए हैं. 11 सितंबर 1983 को शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने भारतीय धर्म की प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम किया. साथ ही उस सम्मेलन की कई खास बातें हैं जो सभी को याद हैं. उनमें से एक है उनका संबोधन जो उन्होंने अमेरिका में किया था- मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों! एबीपी की एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका जाने के लिए स्वामी विवेकानंद के पास पैसे नहीं थे. उनके अमेरिका की यात्रा का पूरा खर्च राजपूताना के खेतड़ी नरेश द्वारा उठाया गया. उन्होंने ही स्वामी जी को नरेंद्र नाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद का नाम भी दिया.
जब अमेरिकी महिला ने दिया शादी का प्रस्ताव
स्वामी जी के जीवन का एक बड़ा ही रोचक किस्सा भी है, जो सभी को ज़रूर जानना चाहिए. एक समारोह के सिलसिले में जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए थे, तो एक महिला ने उन्हें विवाह का प्रस्ताव भी दिया था. महिला ने स्वामी जी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. इस पर स्वामी जी ने उनसे कहा कि आप मुझसे विवाह क्यों करना चाहती हैं? इस पर महिला ने कहा कि मैं आपके जैसे विद्वान पुत्र चाहती हूं. इस पर स्वामी जी ने कहा, मैं तो सन्यासी हूं, मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता. आप मुझे अपना पुत्र बना लीजिए, तो आपकी विद्वान पुत्र पाने की इच्छा पूरी हो जाएगी. स्वामी विवेकानंद सभी महिलाओं को मां का ही दर्जा देते थे. वह आजीवन अविवाहित रहे.
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