पुरी के गजपति महाराजा दिब्यसिंह देबा ने सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार `छेरा पाहनरा` निभाते हुए स्वेच्छा से सोने के झाड़ू से स्नान मंडप की सफाई की.
इस अवसर पर राजसी वेशभूषा में सजे महाराजा ने भगवान की सेवा में खुद को समर्पित करते हुए विनम्रता की अद्भुत मिसाल पेश की.
देव स्नान पूर्णिमा के दिन, श्री जगन्नाथ और उनके भाई-बहन को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है.
इस आयोजन को `स्नान यात्रा` कहा जाता है, जो रथ यात्रा की पूर्व संध्या पर होती है. स्नान के बाद भगवानों को ‘हातीसुनार’ रूप में सजाया गया, जिसमें उन्हें गज (हाथी) के रूप में अलंकृत किया जाता है. इस अद्वितीय दर्शन को ‘हातीसुनार वेष’ कहा जाता है.
श्रद्धालुओं के अनुसार, यह दृश्य दिव्य अनुभूति देने वाला होता है और केवल इस दिन ही भगवान जगन्नाथ को इस रूप में देखा जा सकता है.
स्नान पूर्णिमा के बाद भगवान 15 दिन के लिए ‘अनसर घर’ में विश्राम करते हैं, जिसे ‘अनसर काल’ कहा जाता है.
इस वर्ष, जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून 2025 को शुरू होगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने विशाल रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे.
प्रशासन द्वारा सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन की विस्तृत व्यवस्था की जा रही है. ओडिशा सरकार और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने इस आयोजन को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए विशेष इंतज़ाम किए हैं.
पूरी तीर्थनगरी इस समय भक्ति, परंपरा और उल्लास से सराबोर है, और स्नान पूर्णिमा ने रथ यात्रा की आध्यात्मिक शुरुआत को चिह्नित कर दिया है.
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