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फांसी की सजा के खिलाफ SC में याचिका, कहा- `इंजेक्शन से दें सजा`

Updated on: 15 October, 2025 08:30 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि समस्या यह है कि सरकार इस पर कोई फैसला लेने को तैयार नहीं है.

प्रतीकात्मक चित्र (सौजन्य: मिड-डे)

प्रतीकात्मक चित्र (सौजन्य: मिड-डे)

सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में दायर एक याचिका ने भारत में मृत्युदंड के तरीके पर सवाल उठाए हैं. याचिका के अनुसार, फांसी का मौजूदा तरीका बेहद अमानवीय और बर्बर है और इसे बदलने की ज़रूरत है. हालाँकि, याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार इस तरीके को बदलने को तैयार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि समस्या यह है कि सरकार इस पर कोई फैसला लेने को तैयार नहीं है. दरअसल, केंद्र ने अदालत से कहा है कि मौत की सज़ा पाए दोषियों को मौत की सज़ा के अलावा घातक इंजेक्शन जैसे विकल्प चुनने का विकल्प देना शायद ज़्यादा व्यावहारिक न हो.

जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी कि दोषी को मौत की सज़ा के लिए फांसी या घातक इंजेक्शन का विकल्प दिया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा, "मृत्युदंड का सबसे अच्छा तरीका घातक इंजेक्शन है. अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने इस तरीके को अपनाया है." उन्होंने आगे तर्क दिया कि घातक इंजेक्शन द्वारा मौत की सज़ा एक मानवीय और सभ्य तरीका है, जबकि फांसी एक क्रूर और बर्बर तरीका है. इस विधि में, शव लगभग 40 मिनट तक रस्सी पर लटका रहता है.


तर्कों को सुनते हुए, न्यायमूर्ति मेहता ने केंद्र सरकार के वकील को याचिकाकर्ता के प्रस्ताव पर सरकार को सलाह देने का सुझाव दिया. केंद्र सरकार के वकील ने जवाब दिया, "प्रति-शपथपत्र में उल्लेख किया गया है कि दोषियों को विकल्प देना व्यावहारिक नहीं है." न्यायमूर्ति मेहता ने जवाब दिया, "समस्या यह है कि सरकार समय के साथ बदलने को तैयार नहीं है. समय के साथ चीजें बदल गई हैं." पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर के लिए स्थगित कर दी. गौरतलब है कि मार्च 2023 की शुरुआत में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकता है जो यह जांच करेगी कि क्या मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी देना कम दर्दनाक होता है. 



न्यायालय ने केंद्र सरकार से फांसी के तरीके से जुड़े मुद्दों पर आंकड़े भी मांगे. हालाँकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि वह सरकार को फांसी का कोई विशेष तरीका अपनाने का निर्देश नहीं दे सकती. इस बीच, ऋषि मल्होत्रा ने 2017 में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें मृत्युदंड की वर्तमान प्रथा को समाप्त करने और अंतःशिरा घातक इंजेक्शन, फायरिंग स्क्वाड, बिजली या गैस चैंबर जैसे कम दर्दनाक तरीकों को अपनाने की मांग की गई थी.


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