Updated on: 24 July, 2025 10:01 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने दो हफ़्ते के भीतर जवाब मांगा है.
प्रतीकात्मक चित्र
सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने गुरुवार को गोलपाड़ा ज़िले के हसीला बील में घरों को अवैध रूप से गिराए जाने का आरोप लगाने वाली एक अवमानना याचिका पर असम सरकार के अधिकारियों को नोटिस जारी किया. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने असम के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों से दो हफ़्ते के भीतर जवाब मांगा है. शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, "हम नोटिस जारी करना चाहते हैं, लेकिन अगर सरकार यह तर्क देती है कि यह सरकारी ज़मीन है, तो हम पहले ही कह चुके हैं कि हमारा आदेश सरकार के स्वामित्व वाली ज़मीन, सड़कों, सार्वजनिक स्थानों, नदियों और जल निकायों पर किसी भी अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा."
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रिपोर्ट के मुताबिक गोवालपाड़ा के आठ निवासियों द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि जून में चलाए गए बड़े पैमाने पर बेदखली और तोड़फोड़ अभियान से 667 से ज़्यादा परिवार प्रभावित हुए हैं, जिनमें से कई छह से सात दशकों से इस ज़मीन पर रह रहे थे. याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि ब्रह्मपुत्र नदी के बार-बार अपना मार्ग बदलने के कारण, लोगों को अक्सर ऊँची जगहों पर स्थानांतरित होने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दायर याचिका में गोलपाड़ा में तोड़फोड़ अभियान के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए असम सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग की गई थी. रिपोर्ट के अनुसार आरोप लगाया गया था कि प्रभावित व्यक्तियों को व्यक्तिगत सुनवाई या अपील दायर करने या न्यायिक समीक्षा के लिए पर्याप्त समय दिए बिना ही तोड़फोड़ की गई.
याचिका के अनुसार, केवल दो दिन का नोटिस दिया गया था, जिसके बाद तोड़फोड़ शुरू हो गई. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे और उनके परिवार लगभग 60 वर्षों से हसीलाबील राजस्व गाँव में अधिकारियों की किसी भी आपत्ति के बिना हाल ही तक रह रहे थे. 13 जून को, अधिकारियों ने एक नोटिस जारी कर सभी निवासियों को अगले दो दिनों में अपने ढाँचे खाली करने और हटाने का निर्देश दिया. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने दावा किया कि कुछ ही दिनों के भीतर, बिना किसी नए कारण बताओ नोटिस या व्यक्तिगत प्रतिनिधित्व का अवसर दिए, बड़े पैमाने पर बेदखली और तोड़फोड़ अभियान चलाया गया. याचिकाकर्ताओं ने मुआवजे, पुनर्वास और ध्वस्त घरों, स्कूलों और अन्य सामुदायिक ढाँचों के पुनर्निर्माण के रूप में अंतरिम राहत की भी मांग की है. सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल 13 नवंबर को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देशव्यापी दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसमें कहा गया था कि बिना पूर्व सूचना के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावित पक्षों को जवाब देने के लिए कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये सुरक्षाएँ सार्वजनिक भूमि जैसे सड़क, फुटपाथ, रेलवे ट्रैक, या नदियों और जल निकायों से सटे क्षेत्रों पर अनधिकृत निर्माणों पर लागू नहीं होंगी, या उन मामलों में लागू नहीं होंगी जहाँ न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश जारी किया गया हो.
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