Updated on: 24 July, 2025 09:32 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
इस बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबेल और अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित हैं. बैठक में 50 मुस्लिम धर्मगुरु शामिल हैं.
मोहन भागवत (चित्र सौजन्य: मिड-डे)
सरसंघचालक मोहन भागवत मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ एक बैठक कर रहे हैं. यह बैठक हरियाणा भवन में आयोजित की जा रही है, जिसका आयोजन अखिल भारतीय इमाम संगठन द्वारा किया गया है. इस बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबेल, सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार, भाजपा संगठन मंत्री बीएल संतोष और अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित हैं. इस बैठक में 50 मुस्लिम धर्मगुरु और बुद्धिजीवी शामिल हैं.
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इस बैठक का मुख्य उद्देश्य इमामों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देना, भारतीय मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करना, अंतर-धार्मिक संवाद और शांति स्थापना में योगदान देना और सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास के लिए कार्य करना है. मोहन भागवत पहले भी ऐसी बैठकों में भाग ले चुके हैं. अखिल भारतीय इमाम संगठन (AIIO) भारत में इमामों का एक बड़ा संगठन है. यह संगठन भारत में लगभग पाँच लाख इमामों का प्रतिनिधित्व करता है और दो करोड़ मुसलमानों के धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए कार्य करता है. इस संगठन के केंद्रीय इमाम डॉ. उमर अहमद इलियासी हैं, जो अंतर-धार्मिक शांति और सद्भाव के लिए सक्रिय हैं.
अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य इमाम डॉ. उमर अहमद इलियासी भी अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं. इससे पहले भी, भागवत, उमर अहमद इलियासी के निमंत्रण पर जनपथ मार्ग स्थित मस्जिद गए थे. कुछ साल पहले तक यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) किसी मस्जिद या मुस्लिम इलाके में संवाद करेगा, लेकिन अब यह हकीकत बन गया है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत खुद मुस्लिम धर्मगुरुओं, मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. हरियाणा भवन में हुई हालिया बैठक इसका एक उदाहरण है, जहाँ भागवत ने 50 मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुलाकात की. उन्होंने उनकी बातें सुनीं. सवाल यह है कि आरएसएस मुसलमानों के करीब क्यों आ रहा है? किन राज्यों में आरएसएस के प्रयास तेज़ हुए हैं? मुस्लिम समुदाय के किन वर्गों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है और क्यों? इन वर्गों का राजनीति में कितना प्रभाव है? और सबसे अहम सवाल यह है कि अपनी मुस्लिम विरोधी छवि के बावजूद आरएसएस को मुसलमानों से जुड़ने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? क्या यह बदलते भारत का संकेत है? या यह 2024 और उसके बाद के 2029 के राजनीतिक गणित का हिस्सा है? आरएसएस भाजपा को मुसलमानों में पैठ बनाने में कैसे मदद कर रहा है?
भागवत जिन मुस्लिम धर्मगुरुओं और विद्वानों से मिले, उनमें अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य इमाम उमर अहमद इलियासी, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व चांसलर और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के पोते फ़िरोज़ बख्त अहमद, मौलाना महमूद हसन, मौलाना नज़ीमुद्दीन, ज़ुबैर गोपालानी और 20 से ज़्यादा अन्य धर्मगुरु शामिल थे. ये लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, दिल्ली समेत देश भर से आए थे. फ़िरोज़ बख्त ने कहा कि भाईचारा सबसे अहम मुद्दा है. खाई पैदा करने की कोशिश हो रही है, उसे पाटने की बात हो रही है. हम अलग-अलग धर्मों को मानते हैं, लेकिन हम सब भारतीय हैं. इमाम इलियासी ने कहा कि यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम धर्मगुरु आरएसएस से मिले हैं. आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार वर्षों से मुस्लिम समुदाय से बातचीत करते रहे हैं. ये बैठकें सामान्य नहीं हैं. यह भाजपा द्वारा मुसलमानों में पैठ बनाने की एक कोशिश है.
आरएसएस अब खुले तौर पर कहता है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति भारतीय है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो. इसके पीछे मकसद मुसलमानों के बीच आरएसएस और बीजेपी के `डर` की छवि को बदलना है. लेकिन एक और वजह बीजेपी की पहुँच उन समुदायों तक पहुँचाना है जो अब तक उससे जुड़ नहीं पाए हैं. खासकर हाशिए पर पड़े मुसलमान, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं.
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