Updated on: 24 August, 2025 03:12 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
यह घोटाला तब सामने आया जब डोरी डगर के रशपाल चंद ने शिकायत की.
तस्वीर/x@_pampruk
पुलिस ने "डॉली की डोली" जैसी एक सच्ची कहानी का पर्दाफाश किया है. उत्तर प्रदेश की एक महिला समेत पाँच लोगों को एक फ़र्ज़ी शादी का रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है, जिसने भोले-भाले दूल्हों से लाखों की ठगी की. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार यह घोटाला तब सामने आया जब डोरी डगर के रशपाल चंद ने शिकायत की कि उनकी नई दुल्हन शादी के दो दिन बाद ही गायब हो गई. एक पुलिस प्रवक्ता ने कहा, "वह दूल्हे को बेसहारा छोड़कर अपने साथियों के साथ भाग गई."
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रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने बताया कि शादी संपन्न होने के दो दिन के भीतर ही दुल्हन अपने साथियों के साथ फरार हो गई. जाँच में पता चला कि यह गिरोह एक मैरिज ब्यूरो की आड़ में एक धोखाधड़ी का नेटवर्क चला रहा था. प्रवक्ता ने बताया कि यह रैकेट दुल्हन, पुजारी और संबंधित औपचारिकताओं सहित हर चीज़ का प्रबंधन करता था. शादी के तुरंत बाद, दुल्हन किसी न किसी बहाने दूल्हे को छोड़ देती थी. प्रवक्ता ने बताया कि पुलिस ने पुंछ निवासी दीपक कुमार और विकास कुमार, बिहार निवासी अरुण कुमार और उत्तर प्रदेश निवासी इस्तखार और कुसुम लता नामक "दुल्हन" को गिरफ्तार किया है. उन्होंने बताया कि जाँच के दौरान अखनूर और नगरोटा से भी ऐसे ही चार मामले सामने आए.
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को निर्देश दिया कि वह बिहार में आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत बाहर किए गए मतदाताओं को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से अपने दावे प्रस्तुत करने की अनुमति दे. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने फैसला सुनाया कि दावा प्रपत्र आधार संख्या और एसआईआर के तहत मतदाता पहचान के लिए स्वीकार किए जाने वाले 11 निर्धारित दस्तावेजों में से किसी एक के साथ दाखिल किए जा सकते हैं.
ईसीआई ने पीठ को सूचित किया कि लगभग 85,000 बहिष्कृत व्यक्ति पहले ही दावा प्रपत्र जमा कर चुके हैं, जबकि अब तक एसआईआर प्रक्रिया के तहत 2 लाख से अधिक नए मतदाता पंजीकृत हुए हैं. 14 अगस्त को, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण पाँच दिनों के भीतर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि इस कदम का उद्देश्य संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है और दावे दायर करने के लिए आधार को वैध पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी.
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