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शिवसेना (उद्धव गुट) नेता अखिल चित्रे की चेतावनी: `हिंदी को थोपने की कोशिश की तो सरकार को सामना करना पड़ेगा`

Updated on: 24 June, 2025 12:35 PM IST | Mumbai
Ujwala Dharpawar | ujwala.dharpawar@mid-day.com

महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के फैसले पर सियासी विवाद गहरा गया है. शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता अखिल चित्रे ने मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि यह कदम मराठी भाषा और राज्य की संस्कृति के खिलाफ है.

X/Pics, Akhil Chitre

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महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के फैसले ने राज्य में सियासी घमासान मचा दिया है. मुख्यमंत्री के इस फैसले के बाद शिवसेना (उद्धव गुट) ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और राज्य सरकार के इस कदम को घेरते हुए इसे महाराष्ट्र के खिलाफ बताया है. शिवसेना नेता अखिल चित्रे ने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री को घेरते हुए आरोप लगाया कि वे मराठी की जगह हिंदी को थोपने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि "हिंदी की अनिवार्यता बंद करने" और "मराठी को प्राथमिकता देने" की चर्चा करना एक धोखा है, जो केवल जनता को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है.

 



 


चित्रे ने मुख्यमंत्री के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में दिए गए बयान को भी पूरी तरह से झूठा बताया. उन्होंने कहा, "तीन भाषाओं का फार्मूला और राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उदाहरण मुख्यमंत्री ने जो दिया, वह केवल आंशिक रूप से ही नहीं, बल्कि पूरी तरह से गलत है. यह सिर्फ राजनीतिक छलावा है." उनका कहना था कि यह झूठी बयानबाजी करने के बजाय सरकार को इस मुद्दे पर व्यापक अध्ययन करना चाहिए था, ताकि राज्य की अस्मिता और मराठी भाषा पर कोई आंच न आए.

शिवसेना नेता ने चेतावनी दी कि यदि महाराष्ट्र में हिंदीकरण की इस प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया, तो पार्टी इसे बर्दाश्त नहीं करेगी. "महाराष्ट्र के युवाओं पर तीन भाषाओं का बोझ डालने की कोशिश न करें, क्योंकि इससे उनकी शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. हम इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे." चित्रे ने आगे कहा, "यदि इस तरह की नीति लागू की गई तो महाराष्ट्र सरकार को हमारी नाराजगी का सामना करना पड़ेगा, जो कि मराठी संस्कृति और भाषाओं के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को नजरअंदाज करने के लिए बिल्कुल भी सही नहीं होगा."

यह विवाद केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी बन चुका है, क्योंकि मराठी समाज अपने मातृभाषा की सुरक्षा को लेकर हमेशा से बहुत संवेदनशील रहा है. राज्य में हिंदी को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव स्थानीय लोगों के बीच नाराजगी का कारण बन सकता है, जो कि इस फैसले को मराठी भाषा के अस्तित्व पर खतरे के रूप में देख रहे हैं.

कुल मिलाकर, महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का निर्णय अब राजनीतिक लड़ाई का रूप ले चुका है. राज्य सरकार के इस कदम पर सियासी दलों का बंटवारा साफ तौर पर दिख रहा है, और अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह कदम सच में राज्य की शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए उठाया गया था, या फिर यह एक राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा है?

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