Updated on: 22 August, 2025 07:20 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने फैसला सुनाया कि दावा प्रपत्र आधार संख्या और एसआईआर के तहत 11 दस्तावेजों में से किसी एक के साथ दाखिल किए जा सकते हैं.
फ़ाइल चित्र
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को निर्देश दिया कि वह बिहार में आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत बाहर किए गए मतदाताओं को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से अपने दावे प्रस्तुत करने की अनुमति दे. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने फैसला सुनाया कि दावा प्रपत्र आधार संख्या और एसआईआर के तहत मतदाता पहचान के लिए स्वीकार किए जाने वाले 11 निर्धारित दस्तावेजों में से किसी एक के साथ दाखिल किए जा सकते हैं.
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रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 65 लाख मतदाताओं के बहिष्करण के संबंध में आपत्तियां दर्ज करने में राजनीतिक दलों की ओर से पहल की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए, शीर्ष अदालत ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को कार्यवाही में शामिल करने का निर्देश दिया. पीठ ने अगली सुनवाई 8 सितंबर के लिए निर्धारित करते हुए कहा, "सभी राजनीतिक दल अगली सुनवाई की तारीख तक उस दावा प्रपत्र पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें जिसे उन्होंने बहिष्कृत मतदाताओं द्वारा दाखिल करने में मदद की थी."
अदालत ने चुनाव अधिकारियों को बहिष्कृत मतदाताओं की ओर से भौतिक दावा प्रपत्र जमा करने वाले राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंटों को पावती रसीदें जारी करने का भी निर्देश दिया. ईसीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से अनुरोध किया कि चुनाव निकाय को यह साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाए कि कोई भी गलत बहिष्करण नहीं हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार द्विवेदी ने अदालत से कहा, "राजनीतिक दल शोर मचा रहे हैं और हालात खराब नहीं हैं. हम पर विश्वास रखें और हमें कुछ और समय दें. हम आपको दिखा देंगे कि कोई बहिष्कृत नहीं है."
ईसीआई ने पीठ को सूचित किया कि लगभग 85,000 बहिष्कृत व्यक्ति पहले ही दावा प्रपत्र जमा कर चुके हैं, जबकि अब तक एसआईआर प्रक्रिया के तहत 2 लाख से अधिक नए मतदाता पंजीकृत हुए हैं. 14 अगस्त को, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण पाँच दिनों के भीतर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि इस कदम का उद्देश्य संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है और दावे दायर करने के लिए आधार को वैध पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी.
पीठ ने टिप्पणी की थी कि चुनाव आयोग को अपने खिलाफ "गढ़े जा रहे आख्यान" को दूर करना चाहिए, और कहा था, "पारदर्शिता मतदाताओं का विश्वास पैदा करेगी." यह एसआईआर 2003 के बाद से बिहार की मतदाता सूची का पहला संशोधन है. यह प्रक्रिया राजनीतिक रूप से विवादास्पद हो गई है क्योंकि इसमें राज्य के कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में कमी आई है—संशोधन से पहले 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़—जिससे सभी दलों में चिंताएँ बढ़ गई हैं.
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