होम > न्यूज़ > नेशनल न्यूज़ > आर्टिकल > सुप्रीम कोर्ट ने कैश मामले में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर लगाई लताड़

सुप्रीम कोर्ट ने कैश मामले में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर लगाई लताड़

Updated on: 28 July, 2025 05:24 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने न्यायमूर्ति वर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा कि आप जाँच समिति के समक्ष क्यों पेश हुए.

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. फ़ाइल चित्र

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. फ़ाइल चित्र

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उनके आधिकारिक आवास से जली हुई नकदी का भारी भंडार मिलने के मामले में उन पर अभियोग लगाने वाली आंतरिक जाँच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने की उनकी याचिका पर सवाल पूछे. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने न्यायमूर्ति वर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा कि आप जाँच समिति के समक्ष क्यों पेश हुए? क्या आप वीडियो हटाने का अनुरोध करने अदालत आए थे? आपने जाँच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने का इंतज़ार क्यों किया? क्या आपने पहले वहाँ अनुकूल आदेश की उम्मीद की थी."

रिपोर्ट के मुताबिक  शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति वर्मा से उनकी याचिका में शामिल पक्षों के बारे में भी पूछताछ की और कहा कि उन्हें अपनी याचिका के साथ आंतरिक जाँच रिपोर्ट भी दाखिल करनी चाहिए थी. सिब्बल ने दलील दी कि अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन) के तहत एक प्रक्रिया है और एक न्यायाधीश सार्वजनिक बहस का विषय नहीं हो सकता. सिब्बल ने कहा, "संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना, सार्वजनिक आक्रोश और न्यायाधीशों पर मीडिया में आरोप लगाना प्रतिबंधित है."


शीर्ष अदालत ने सिब्बल से एक पृष्ठ के बुलेट पॉइंट्स के साथ आने और पक्षकारों के ज्ञापन में सुधार करने को कहा. रिपोर्ट के अनुसार मामले की सुनवाई 30 जुलाई के लिए निर्धारित की गई है. न्यायमूर्ति वर्मा ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को की गई उस सिफारिश को रद्द करने की मांग की है जिसमें उन्होंने संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था.


उनकी याचिका में कहा गया है कि जाँच ने "साक्ष्य के भार को उलट दिया", जिससे उन्हें अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों की जाँच करने और उन्हें गलत साबित करने की आवश्यकता हुई. रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोप लगाया कि पैनल के निष्कर्ष पूर्वकल्पित कथा पर आधारित थे, और उन्होंने कहा कि जाँच की समय-सीमा केवल "प्रक्रियात्मक निष्पक्षता" की कीमत पर भी, कार्यवाही को शीघ्रता से समाप्त करने की इच्छा से प्रेरित थी.

याचिका में तर्क दिया गया है कि जाँच पैनल ने उन्हें पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही प्रतिकूल निष्कर्ष निकाले. घटना की जाँच कर रहे जाँच पैनल की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था जहाँ आग लगने की घटना के बाद भारी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी. इससे उनके कदाचार का प्रमाण मिलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाले तीन न्यायाधीशों के पैनल ने 10 दिनों तक जाँच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और उस घटनास्थल का दौरा किया जहाँ 14 मार्च को रात लगभग 11.35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास पर आकस्मिक आग लग गई थी. वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश हैं और अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत हैं. इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की.


अन्य आर्टिकल

फोटो गेलरी

रिलेटेड वीडियो

This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK