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श्री संजीव क्वात्रा ने “भारत को विश्व गुरु” बनाने के लिए एक परिवर्तनकारी सर्वांगी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया

Updated on: 30 June, 2025 06:46 PM IST | Mumbai
Bespoke Stories Studio | bespokestories@mid-day.com

श्री संजीव आध्यात्मिकता को व्यक्तिगत विश्राम नहीं, किन्तु वैश्विक जिम्मेदारी मानते हैं।

Sanjeev Kwatra

Sanjeev Kwatra

जाने-माने आध्यात्मिक गुरु और विचारक श्री संजीव क्वात्रा ने दया, मानवता, धर्म, शिक्षा समानता और वैश्विक चेतना के माध्यम से "भारत को विश्व गुरु" के रूप में विकसित करने का आह्वान कर अपना वैचारिक द्रष्टिकोण प्रस्तुत किया है। वे प्रसिद्ध इंडस्ट्री एक्सपर्ट(उद्योग विशेषज्ञ) और प्रेरक वक्ता है। उन्होंने भारत को विश्व गुरु के रूप में अपनी प्राचीन पहचान पुनः प्राप्त करने तथा इसे वैश्विक स्तर पर नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक बनाने का एक परिवर्तनकारी अभिगम पेश किया है। अपने लेखन, वीडियो ब्लॉग और सार्वजनिक प्रवचनों के माध्यम से वे आत्म-साक्षात्कार, मानवीय मूल्यों और सामूहिक जागृति पर आधारित मार्ग प्रस्तुत करते हैं। 


ज्ञान प्रेम की ऊर्जा के माध्यम से परिवर्तन लाता है :

उनके अनुसार, केवल शैक्षणिक ज्ञान ही सच्चा ज्ञान नहीं है। वास्तव में, यह स्वयं प्रकट होता है, जो ईश्वर के प्रति प्रेम और जीवित ज्ञान से उभरकर आता है। उनका मानना है कि, भारत के नेतृत्व को भौतिक प्रभुत्व के माध्यम से नहीं, किन्तु आध्यात्मिक भावना के माध्यम से विकसित करना चाहिए। इसका केन्द्र बिन्दु आन्तरिक शान्ति है, जो प्रामाणिकता, आत्म-प्रेम और सजगता पर आधारित है। शांत मन हमेशा शांति फैलाता है और दूसरों को प्रोत्साहित करता है। उनका कहना है कि, भारत की भूमिका प्रभुत्व स्थापित करने की नहीं, किन्तु प्रेम की ऊर्जा के माध्यम से प्रेरणा देने की है। 

वैश्विक नेतृत्व की वास्तविक नींव मानव धर्म है : 

उन्होंने कहा कि, "हमने धर्म सीखा है, लेकिन मानव धर्म नहीं सीखा।" उनका मानना है कि, जब भारत सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों के अनुसार जीएगा, तभी सच्चा परिवर्तन शुरू होगा। भारत विरोध का देश नहीं है, बल्कि यह हर समुदाय और श्रद्धा को स्वीकार करता है। इसका मतलब हानिकारक रीति-रिवाजों को बनाए रखना नहीं है। परंतु इसका अर्थ उन्हें दमन द्वारा दबाना नहीं, किन्तु समझदारी के साथ सुधारना है। वे समझाते हैं कि यही भारत का वास्तविक तरीका है, हम उन्हें शुद्ध करते हैं, नाबूद नहीं करते। मंतव्यों के मतभेदों का निवारण मुश्किल हैं, लेकिन दूसरे के दुख से संतुष्टि पाने की मंशा को कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं, तो वाकई में यह मानसिकता ही दोषपूर्ण है। उन्होंने भारपूर्वक कहा कि, यह मूल शिक्षा है जिसे हर बच्चे को 8वीं या 10वीं कक्षा तक पढ़ाया जाना चाहिए। 

वैश्विक दृष्टिकोण के साथ आध्यात्मिकता की प्रेरणा : 

श्री संजीव आध्यात्मिकता को व्यक्तिगत विश्राम नहीं, किन्तु वैश्विक जिम्मेदारी मानते हैं। वे लोगों से शांति, विनम्रता और साझा एवं सहयोगी मानवता पर आधारित “वैश्विक विचार” व्यवहार अपनाने का आग्रह करते हैं। यह दृष्टिकोण विश्व गुरु भारत के मिशन के अनुरूप है, जो भारत के प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान को आधुनिक, समाधान-संचालित नेतृत्व के साथ मिश्रित करने के लिए समर्पित संगठन है। 

महिलाओं और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उपेक्षित समुदायों को सशक्तिकरण : 

जो देश अपनी बेटियों का सम्मान नहीं करता, वह दुनिया के लिए शिक्षक नहीं बना सकता। वे महिलाओं के प्रति गहरे अविश्वास और उन्हें अधिकारहीन रखे जाने की कड़ी आलोचना करते हैं। वे अपने अंतर्मन से परिवारों, संस्थाओं और कार्यस्थलों में नियंत्रण की नहीं, बल्कि विश्वास की संस्कृति विकसित करने की हिमायत करते हैं। उन्होंने इस संदेश को लिंग से आगे विस्तृत करते हुए कहा कि, "मेरा धर्म भारत है। मेरे कार्यों से हमेशा भारत का उत्थान होना चाहिए और मेरे दृष्टिकोण में विकास के प्रत्येक चरण में समाज के हर वर्ग, विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रुप से उपेक्षित एवं वंचित लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।" वे विश्वास व्यक्त करते हुए कहते कि, सच्ची एकता जाति या संप्रदाय/पंथ में नहीं, बल्कि मानवता में निहित है। 

राजनीति का भाई-भतीजावाद से बुद्धिमत्ता में परिवर्तन : 

उनके विज़न में सबसे पहला और ज़रूरी आह्वान राजनीतिक परिवर्तन का है। वे कहते हैं, "नेतृत्व पारिवारिक संबंधों या वर्चस्व से नहीं आना चाहिए, किन्तु वास्तव में यह बुद्धिमता से आना चाहिए।" सच्ची राजनीतिक सोच अधिकार से नहीं, समझ से उत्पन्न होती है। वह समाज के बुद्धिमान और विचारशील सदस्यों को राजनीति में आगे आने का आग्रह करते हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि राजनेता पैदा नहीं होते, हकीकत में उन्हें हमारे बीच से ही उभरना होता है। उन्होंने भारपूर्वक कहा कि, अब देश को असंवेदनशील लोगों के हाथों में सौंपना बंद करने का समय आ गया है। 

करुणा के साथ शक्ति को नए सिरे से विकसित करना : 

"विश्व गुरु" बनने के लिए भारत को केवल हथियारों में ही नहीं, बल्कि भावनाओं में भी शक्ति का समावेश करना होगा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि, भारतीय संस्कृति में हथियारों के प्रति जुनून, विनाशकारी बुद्धि को प्रतिबिंबित करता है। इसके बजाय, भारत को वित्तीय अनुकूलता, सांस्कृतिक अखंडता और सबसे बढ़कर, अनंत प्रेम के साथ नेतृत्व करना चाहिए। वे कहते हैं, "सच्ची शक्ति, ताकत रखने और प्रेम को पसंद करने में निहित है। तभी उस प्रेम का सम्मान होता है।" 

परिवर्तन जबरदस्ती से नहीं, बल्कि ऐसे प्रेमपूर्ण व्यवहार से आना चाहिए जो दूसरों को भी विकसित होने के लिए प्रोत्साहित करें। यह भारत की नई परिकल्पना है, जो गरीबी की भूमि नहीं, बल्कि करुणा से ओतप्रोत शक्ति की भूमि है। 

सांस्कृतिक पहचान और आध्यात्मिक लोकतंत्र : 

भारत की सभ्यतागत विरासत, इसकी बहुलतावाद, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और आध्यात्मिक लोकतंत्र इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। श्री संजीव क्वात्रा प्रदर्शनात्मक एकता के प्रति आगाह करते हैं। उनका मानना है कि, “हम यह कहते हैं कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई भाई-भाई हैं, लेकिन ऐसा कहने की आवश्यकता का अर्थ है कि, हम इसमें संपूर्ण विश्वास नहीं करते। यदि ऐसा होता, तो हमें इसे बार-बार दोहराने की क्या आवश्यकता होती?" वह इस भावना को ईमानदारी से बढ़ावा देने का आग्रह करते हैं, अन्यथा भविष्य में विभाजन गहराने का जोखिम रहेगा। 

आंतरिक परिवर्तन से वैश्विक जागृति तक : 

श्री संजीव क्वात्रा इस बात पर जोर देते हैं कि, वैश्विक नेतृत्व का मार्ग भीतर से शुरू होता है। व्यक्ति को शांति, सहानुभूति और आत्म-जागरूकता विकसित करनी चाहिए। ऐसा होगा तभी ये मूल्य घरों, स्कूलों, संस्थानों और राष्ट्रों में फैल सकते हैं। वे शैक्षिक समानता, सम्मान-केन्द्रित पारिवारिक प्रणाली, लैंगिक समानता, विचारशील उद्यमशीलता और जमीनी स्तर पर ज्ञान-आधारित राजनीति का आह्वान करते हैं। सबसे बढ़कर, वे भारत के नागरिकों से वैश्विक चेतना के साथ जीने का आग्रह करते हैं, जो हकीकत में "वसुधैव कुटुम्बकम", अर्थात् विश्व को एक परिवार मानने के प्राचीन भारतीय आदर्श पर आधारित है। 

लोगों द्वारा संचालित आध्यात्मिक राष्ट्र के साथ आगे देखना : 

श्री संजीव ने इस बात पर जोर देते है कि, भारत का विश्व गुरु के रूप में उत्थान संस्थाओं द्वारा नहीं, बल्कि लोगों द्वारा ही होगा। वे कहते हैं, "अगर हम आज से ही शुरुआत करते हैं, तो हम कल का निर्माण कर सकते हैं।" भारत की वास्तविक विरासत उसकी जीडीपी या भू-राजनीति में नहीं, बल्कि उसके दयालु, समावेशी और जागरूक चरित्र की ताकत में होगी। 

उन्होंने निष्कर्ष देते हुए कहा कि, भारत का वचन सिर्फ नेतृत्व करना नहीं है, बल्कि मार्ग प्रशस्त करना भी है। 

श्री संजीव क्वात्रा के बारे में संक्षिप्त जानकारी : 

श्री संजीव क्वात्रा एक दूरदर्शी नेता है तथा वे ईमानदारी, करुणा और उद्देश्य की मिसाल हैं। उन्होंने अनेक व्यावसायिक उपक्रमों का प्रबंधन किया है। वे हमेशा यही कोशिश करते हैं कि, उनके कार्य से उनके आस-पास के लोगों में सकारात्मकता का संचार हो। उनका मार्गदर्शक सिद्धांत खुशी और प्रेम फैलाना है, जो निम्न शाश्वत फिलोसॉफी से प्रेरित है : 

”सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।” 

शांत शहर ऋषिकेश में जन्मे श्री संजीव क्वात्रा को प्रकृति और आध्यात्मिकता के साथ गहरा लगाव है। उनका यही जुडाव, जीवन के प्रति उनके आशावादी और सेवा-प्रेरित दृष्टिकोण को आकार देता है। संजीव की जीवन यात्रा अन्य लोगों को कृतज्ञता, दया और सभी की भलाई के लिए जिम्मेदारी की गहरी भावना के साथ जीने के लिए प्रोत्साहित करती है। 

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