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Mannu Kya Karegga review: बिना शोर किए दिल जीतने वाली संजय त्रिपाठी के निर्देशन में बनी फिल्म है मन्नू क्या करेगा?

Updated on: 12 September, 2025 01:24 PM IST | Mumbai

संजय त्रिपाठी का निर्देशन बिना बनावटी ड्रामा डाले सधा हुआ है, वहीं सौरभ गुप्ता और राधिका मल्होत्रा की लेखनी कहानी को आत्मा देती है.

Mannu Kya Karegga Film

Mannu Kya Karegga Film

Mannu Kya Karegga Review: बॉलीवुड में अक्सर बिना बड़े प्रचार के आई फिल्में या तो भीड़ में खो जाती हैं या फिर अपने सादेपन से दर्शकों का दिल जीत लेती हैं. हाल ही में रिलीज़ हुई ‘मन्नू क्या करेगा?’ दूसरी श्रेणी की फिल्म साबित हो रही है — जो शोर नहीं मचाती, लेकिन धीरे-धीरे दर्शकों के मन में अपनी जगह बना रही है.

संजय त्रिपाठी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में व्योम यादव, साची बिंद्रा, कुमुद मिश्रा, विनय पाठक, चारु शंकर, राजेश कुमार, बृजेंद्र काला, नमन गोर, आयत मेमन, डिंपल शर्मा और लवीना टंडन जैसे कलाकार नजर आते हैं. फिल्म को शरद मेहरा ने क्यूरियस ऑय फिल्म्स के बैनर तले प्रोड्यूस किया है. इसकी अवधि 141.35 मिनट है और इसे 3.5 स्टार रेटिंग दी गई है.


कहानी देहरादून की पहाड़ियों के बीच बसे एक कॉलेज की है, जहां मानव चतुर्वेदी उर्फ मन्नू पढ़ता है. पढ़ाई, खेल, थियेटर और टेक्नोलॉजी में अव्वल मन्नू जिंदगी की दिशा को लेकर उलझा हुआ है. कॉलेज में दाखिल होती है जिया रस्तोगी — जो स्पष्ट लक्ष्य और आत्मविश्वास के साथ आई है. दोनों की दोस्ती एक खूबसूरत रिश्ते में बदलती है, लेकिन जिया को लगता है कि मन्नू फोकस नहीं कर पा रहा. खुद को साबित करने की जिद में मन्नू “Nothing” नाम का एक फर्जी स्टार्टअप गढ़ लेता है, जो आखिरकार झूठ की तरह ढह जाता है. टूटे मन के बीच मन्नू को राह दिखाते हैं डीन डॉन सर, जो उसे Ikigai (जीवन का उद्देश्य) से परिचित कराते हैं — और यहीं से मन्नू की असली यात्रा शुरू होती है.


 


 

फिल्म में व्योम यादव ने मन्नू की मासूमियत और उलझन को सहजता से जिया है, जबकि साची बिंद्रा आत्मविश्वासी जिया के रोल में प्रभाव छोड़ती हैं. विनय पाठक का डॉन सर एक आदर्श शिक्षक का अहसास कराते हैं. कुमुद मिश्रा और चारु शंकर ने माता-पिता की भूमिकाओं में भावनाओं की गहराई जोड़ी है. सहायक कलाकार भी अपने किरदारों में पूरी ईमानदारी से नजर आते हैं.

“फना हुआ”, “हमनवा”, “तेरी यादें” और टाइटल ट्रैक जैसे गाने कहानी के साथ भावनाओं को गहराई देते हैं, जबकि बैकग्राउंड स्कोर सीन को और मजबूत बनाता है. देहरादून की गलियों और कैंपस को दिखाती सिनेमैटोग्राफी बेहद जीवंत है.

संजय त्रिपाठी का निर्देशन बिना बनावटी ड्रामा डाले सधा हुआ है, वहीं सौरभ गुप्ता और राधिका मल्होत्रा की लेखनी कहानी को आत्मा देती है.

कुल मिलाकर, ‘मन्नू क्या करेगा?’ एक ऐसी फिल्म है जो बताती है कि सादगी में भी जादू छुपा होता है. यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक एहसास है — जो देखने के बाद देर तक दिल में ठहर जाता है.

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