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यहां पढ़ें विक्की कौशल की फिल्म का रिव्यू, जानिए कैसे मिला `बहादुर` उपनाम

Updated on: 08 December, 2023 08:05 AM IST | mumbai
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विक्की कौशल की फिल्म सैम बहादुर की बात करें तो फिल्म 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग जिताने वाले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित है. इस फिल्म की शुरुआत एक दृश्य से होती है जहां पति-पत्नी आपस में बात कर रहे हैं.

फोटो सैम बहादुर फिल्म से

फोटो सैम बहादुर फिल्म से

विक्की कौशल की फिल्म सैम बहादुर साल 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग जिताने वाले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित है. इस फिल्म की शुरुआत एक दृश्य से होती है जहां पति-पत्नी आपस में बात कर रहे हैं. पति ने पत्नी को बताया कि पड़ोस में चोरी हो गई और चोर का नाम वही है जो उनके बच्चे का नाम है. ऐसे में वह बच्चे का नाम बदलने की बात करते हैं. अगल ही पल में दिखाया जाता है कि एक सीनियर ऑफिसर कहीं से आकर एक जवान से अपना नाम पूछता है कि उनका नाम क्या है. जवान कहता है सैम बहादुर. यहीं से शुरू होती है सैम बहादुर फिल्म. आपको बता दें कि 8वीं गोरखा राइफल्स के सैनिकों द्वारा `बहादुर` उपनाम दिया गया था.

एक ऐसे महान आर्मी ऑफिसर की कहानी जो जंग को जीतने के लिए ही लड़ता था. विक्की कौशल ने सैम मानेकशॉ का किरदार काफी अच्छे से निभाया है. वह सैम के लुक में काफी अच्छे लग रहे हैं. विक्की कौशल की फिल्म में सैम मानेकशॉ की पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों ही लाइफ की झलक देखने को मिलती है. फिल्म की एडिटिंग काफी अच्छी है.


इतना ही नहीं आर्मी ऑफिसर के जीवन को देखने के साथ कुछ सीखने को भी मिलता है. फिल्म में कई जगह गोली और बंदूक की आवाजें एकदम से आती हैं जो चौंकाने वाली हैं. फिल्म में सैम के ह्यूमर और मजाकिया अंदाज को भी दिखाया गया है. वे एक ऐसे आर्मी चीफ थे, जो तत्कालीन PM इंदिरा गांधी की बात काटने से भी नहीं डरते थे. इतना ही नहीं, वे इंदिरा गांधी को स्वीटी तक कहते थे. पाकिस्तान के उस वक्त के सैन्य जनरल और बाद में प्रधानमंत्री बने याह्या खान और सैम मानेकशॉ के रिश्ते को भी फिल्म में अनूठे तरीके से दिखाया गया है. पर्सनली दोनों के बीच दोस्ती थी, लेकिन जंग के मैदान में दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे.


फिल्म में विक्की कौशल ने शानदार एक्टिंग की है. वहीं, सान्या मल्होत्रा ने फिल्म में मानेकशॉ की पत्नी का किरदार ठीक ठाक ही निभाया है. इंदिरा गांधी का किरदार निभा रही फातिमा सना शेख, इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी लगती हैं. उनका मेकअप और लुक तो खराब है ही, एक्टिंग के मामले में भी वे निराश करती हैं. मानेकशॉ भारतीय सेना का नेतृत्व करने वाले जनरल थे. उन्हें इसके लिए भारत का पहला फील्ड मार्शल नियुक्त किया गया था, इससे पहले ही उन्हें पद्म भूषण मिल चुका था. निर्देशक मेघना गुलज़ार को भी उतना ही श्रेय दिया जाना चाहिए. गुलज़ार की आखिरी फिल्म, छपाक (2020) जैसी फिल्में कर चुकी हैं. 

सैम मानेकशॉ के बारे में जानने की इच्छा और देश भक्ति की भावना रखते हैं तो जरूर इस फिल्म को देखने जा सकते हैं.


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