Updated on: 21 July, 2025 04:29 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
विस्फोट में 187 लोग मारे गए और 824 घायल हुए.
प्रतिनिधि फ़ाइल चित्र
मुंबई ट्रेन विस्फोट 2006 के मामले में सोमवार को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. ब्लास्ट 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की पश्चिमी उपनगरीय रेलवे लाइन पर शाम 6.23 बजे से 6.29 बजे के बीच सात लोकल ट्रेनों के प्रथम श्रेणी डिब्बों में सात बम विस्फोट हुए. विस्फोट में 187 लोग मारे गए और 824 घायल हुए.
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विभिन्न पुलिस थानों में 11 जुलाई, 2006 को सात अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गईं. बाद में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने इन्हें एक साथ मिलाकर जाँच की. जुलाई-अगस्त 2006: एटीएस ने मामले में संलिप्तता के आरोप में तेरह लोगों को गिरफ्तार किया. 30 नवंबर, 2006 को 13 पाकिस्तानी नागरिकों सहित 30 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया, जिनमें से कई वांछित हैं.
मुकदमा साल 2007 में शुरू हुआ. और 19 अगस्त, 2014: मुक़दमा पूरा हुआ. विशेष अदालत ने 13 गिरफ़्तार अभियुक्तों के ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा. 11 सितंबर, 2015 को विशेष अदालत ने 13 में से 12 अभियुक्तों को दोषी ठहराया. एक अभियुक्त को उसके ख़िलाफ़ सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
30 सितंबर, 2015 को विशेष अदालत ने पाँच दोषियों को मृत्युदंड सुनाया. शेष सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. अक्टूबर 2015: महाराष्ट्र सरकार ने पाँचों अभियुक्तों को सुनाई गई मृत्युदंड की पुष्टि के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दायर की. सभी 12 अभियुक्तों ने अपनी दोषसिद्धि और सज़ा को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की. 2015-2024: उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों के समक्ष अपीलें रखी गईं.
फांसी की सज़ा पाए अभियुक्तों में से एक, एहतेशाम सिद्दीकी ने जून 2024 में उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर कर अपीलों की शीघ्र सुनवाई और निपटारे के लिए हस्तक्षेप की माँग की. जुलाई 2024 में उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की एक विशेष पीठ गठित की. 15 जुलाई, 2024 को उच्च न्यायालय की विशेष पीठ ने अपीलों पर दैनिक आधार पर सुनवाई शुरू की. 31 जनवरी, 2025 को उच्च न्यायालय ने अपीलों पर सुनवाई पूरी की. आदेश के लिए मामला बंद किया.
बम धमाकों के 19 साल बाद, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 12 लोगों को बरी कर दिया, यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है और यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया था. यह महत्वपूर्ण फैसला 19 साल बाद आया. बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए निर्णायक नहीं थे. इसके बाद अदालत ने सभी आरोपियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया.
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