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बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ फुटपाथ को बताया मौलिक अधिकार, कहा- `प्रधानमंत्री और वीवीआईपी के लिए साफ किए गए, तो सभी के लिए क्यों नहीं`

Updated on: 24 June, 2024 09:05 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

न्यायमूर्ति एम एस सोनक और न्यायमूर्ति कमल खता की खंडपीठ ने कहा कि साफ फुटपाथ और चलने के लिए सुरक्षित जगह होना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है.

बॉम्बे हाई कोर्ट. फाइल फोटो

बॉम्बे हाई कोर्ट. फाइल फोटो

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब प्रधानमंत्री और अन्य वीवीआईपी के लिए एक दिन के लिए सड़कें और फुटपाथ साफ किए जाते हैं तो ऐसा हर दिन क्यों नहीं किया जा सकता है. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति एम एस सोनक और न्यायमूर्ति कमल खता की खंडपीठ ने कहा कि साफ फुटपाथ और चलने के लिए सुरक्षित जगह होना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और राज्य के अधिकारियों को इसे उपलब्ध कराना चाहिए. 

रिपोर्ट के मुताबिक के मुताबिक पीठ ने कहा कि राज्य हमेशा यह नहीं सोचता रह सकता कि शहर में फुटपाथों पर अतिक्रमण करने वाले अनधिकृत फेरीवालों की समस्या को हल करने के लिए क्या किया जा सकता है और अब उसे कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. पिछले साल हाई कोर्ट ने शहर में अवैध और अनधिकृत फेरीवालों और विक्रेताओं के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया था.  



पीठ ने सोमवार को कहा कि हालांकि उसे पता है कि समस्या बड़ी है, लेकिन राज्य और नगर निकाय सहित अन्य अधिकारी इसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकते और उन्होंने कुछ कठोर कदम उठाने का आह्वान किया. रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, "जब प्रधानमंत्री या कोई वीवीआईपी आते हैं, तो सड़कें और फुटपाथ तुरंत साफ कर दिए जाते हैं और जब तक वे यहां रहते हैं, तब तक ऐसा ही रहता है. फिर यह कैसे किया जाता है? यह बाकी सभी के लिए क्यों नहीं किया जा सकता? नागरिक करदाता हैं उन्हें साफ फुटपाथ और चलने के लिए सुरक्षित जगह की जरूरत है." अदालत ने पूछा, "फुटपाथ और चलने के लिए सुरक्षित जगह एक मौलिक अधिकार है. हम अपने बच्चों को फुटपाथ पर चलने के लिए कहते हैं, लेकिन अगर चलने के लिए कोई फुटपाथ नहीं बचा है, तो हम अपने बच्चों को क्या बताएंगे?" अदालत ने कहा, "पिछले कई सालों से अधिकारी कह रहे हैं कि वे इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं." 


अदालत ने आगे कहा, "राज्य को कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. ऐसा नहीं हो सकता कि अधिकारी हमेशा यही सोचते रहें कि क्या करना है और उस पर काम करते रहें. ऐसा लगता है कि इच्छाशक्ति की कमी है, क्योंकि जहां इच्छाशक्ति होती है, वहां हमेशा कोई रास्ता निकल आता है." रिपोर्ट के मुताबिक बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस यू कामदार ने कहा कि ऐसे विक्रेताओं और फेरीवालों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन वे वापस आते रहते हैं. उन्होंने कहा कि बीएमसी भूमिगत बाजारों के विकल्प पर भी विचार कर रही है. इसके बाद अदालत ने मजाक में टिप्पणी की कि निगम सचमुच समस्या को भूमिगत करने की कोशिश कर रहा है. 

पीठ ने कहा कि इन विक्रेताओं/फेरीवालों पर नगर निकायों द्वारा लगाया गया जुर्माना अप्रासंगिक है, क्योंकि उनकी प्रतिदिन बिक्री अधिक होती है. अदालत ने कहा, "आपका जुर्माना उनके लिए बहुत कम है. वे भुगतान करेंगे और चले जाएंगे." अदालत ने बीएमसी को ऐसे सभी फेरीवालों की पहचान करने वाला एक डेटाबेस विकसित करने का सुझाव दिया, ताकि वे आदेशों का उल्लंघन न करें और अपनी दुकानों के साथ वापस न आएं. अदालत ने आगे कहा, "एक तलाशी अभियान चलाया जाए. एक गली से शुरुआत करें. सबसे बड़ी समस्या पहचान की है. वे बार-बार आते रहते हैं, क्योंकि उनकी पहचान नहीं हो पाती."


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