2009 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM) के तहत शुरू की गई इन बसों ने मुंबई के भीड़भाड़ वाले मार्गों पर रोज़ाना लाखों यात्रियों को सफ़र कराया.
इन बसों ने शहर की पहचान बन चुकी लाल रंग की बेस्ट परंपरा को आधुनिक स्वरूप दिया था. अब बस संख्या 1864 के रिटायर होने के साथ इस योजना की सभी बड़ी बसें इतिहास का हिस्सा बन गई हैं.
सिर्फ बस संख्या 1757 ही फिलहाल चालक प्रशिक्षण के लिए उपयोग में है, जिसे 2027 की शुरुआत तक सेवा से हटा दिया जाएगा.
अंतिम यात्रा के दिन, ‘आपली बेस्ट आपल्यासाथी’ समूह और बेस्ट कर्मचारियों ने बस को खास अंदाज़ में विदाई दी.
फूलों, झंडों और गुब्बारों से सजी बस को उसके मूल लाल रंग में रंगा गया. सेवानिवृत्त इंजीनियर सुहास पेडनेकर ने हाथ से डिपो और फ्लीट नंबर लिखकर इसे एक व्यक्तिगत पहचान दी.
समारोह में पारंपरिक नारियल फोड़ने और केक काटने के बाद बस को रूट 207 पर दहिसर के लिए रवाना किया गया. यात्रियों को इस आखिरी सफ़र की याद के तौर पर टिकट के साथ एक चॉकलेट दी गई.
रास्ते में मुंबईकरों ने बस को हाथ हिलाकर अलविदा कहा—जैसे किसी पुराने दोस्त से बिछड़ रहे हों.
दहिसर पहुंचने पर ड्राइवर संतोष कुमार शर्मा, कंडक्टर विश्वास भुलुगड़े और इंजीनियर पेडनेकर को शॉल और श्रीफल देकर सम्मानित किया गया.
अब जब नवंबर के अंत तक मध्यम आकार की जेएनएनयूआरएम बसें भी सेवा से हटेंगी, तो भांडुप और मलाड जैसे इलाकों की बस सेवाओं पर असर पड़ सकता है.
यात्री समूह ने बेस्ट प्रशासन से सेवाओं की निरंतरता बनाए रखने की अपील की है.
आपली बेस्ट आपल्यासाथी के अध्यक्ष रूपेश शेलतकर ने कहा, “हम बेस्ट के बेड़े में स्वामित्व वाली बसों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहेंगे ताकि ‘लाभ से पहले सेवा’ की परंपरा कायम रहे.”
इस तरह बस नंबर 1864 ने न सिर्फ़ अपनी अंतिम यात्रा पूरी की, बल्कि मुंबई की सड़कों पर सेवा, स्मृति और समर्पण की कहानी भी अमर कर दी.
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