महाराष्ट्र सरकार की औद्योगिक नीति के तहत, निजी कंपनियों में पर्यवेक्षक पदों पर योग्य स्थानीय निवासियों को 50 प्रतिशत और अन्य श्रेणी की नौकरियों में 80 प्रतिशत प्राथमिकता देना अनिवार्य है.
हालांकि, इन निर्देशों का पालन कई निजी कंपनियों द्वारा नहीं किया जा रहा है. इसका परिणाम यह हुआ कि हजारों स्थानीय युवा रोजगार के अवसरों से वंचित हैं और बेरोजगारी बढ़ रही है. इससे स्थानीय परिवारों का भविष्य असुरक्षित हो गया है.
यूनियन ने बताया कि सरकार और उद्योगों के साथ कई बार बातचीत की गई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. इसी निष्क्रियता के खिलाफ यूनियन ने भूख हड़ताल शुरू करने का निर्णय लिया.
यूनियन का कहना है कि यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण है और इसका उद्देश्य केवल स्थानीय कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करना है.
भूख हड़ताल के मुख्य मुद्दों में शामिल हैं:
निजी कंपनियों में सरकारी आदेशों का तुरंत और सख्ती से पालन.
स्थानीय श्रमिकों के लिए आरक्षण की गारंटी और नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई.
परियोजना प्रभावित परिवारों के बच्चों को विशेष प्राथमिकता सुनिश्चित करना.
श्रमिकों की शिकायतों के लिए एक स्वतंत्र निवारण तंत्र स्थापित करना.
यूनियन के पदाधिकारी और श्रमिक इस आंदोलन में पूरी तरह एकजुट हैं. उन्होंने कहा कि भूख हड़ताल स्थानीय युवाओं और उनके परिवारों के भविष्य के लिए चेतावनी है.
कई अन्य ट्रेड यूनियन भी इस आंदोलन में शामिल हुए हैं और इसे आगे बढ़ाने का समर्थन कर रहे हैं.
यूनियन का मानना है कि यदि सरकार और उद्योग इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान नहीं देंगे, तो आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है.
स्थानीय युवाओं और परिवारों की मांग है कि सरकारी आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जाए ताकि रोजगार के अवसर बढ़ें और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो.
भूख हड़ताल राज्य में स्थानीय रोजगार और श्रमिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी एक प्रयास है और यूनियन इसे लगातार जारी रखने का संकल्प ले रही है.
इस तरह, 17 अक्टूबर से शुरू हुई यह भूख हड़ताल राज्य में स्थानीय कर्मचारियों के अधिकारों और रोजगार की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.
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