बीएमसी की इस अचानक की गई कार्रवाई ने जैन समाज में आक्रोश की लहर दौड़ा दी. (Pics: Ashish Raje)
मौके पर बड़ी संख्या में जैन महिलाएं और श्रद्धालु इकट्ठा हो गए. उन्होंने न सिर्फ विरोध दर्ज किया, बल्कि घायल कबूतरों को बचाने के लिए एक डिब्बे में उन्हें इकट्ठा कर सुरक्षित किया.
भावुक लेकिन दृढ़ लहजे में महिलाओं ने सवाल उठाया — "क्या अब धार्मिक करुणा भी प्रशासन के निशाने पर है?"
जैन समुदाय का कहना है कि कबूतर खाना सिर्फ दाना पानी का स्थान नहीं, बल्कि उनकी करुणा और जीवदया की परंपरा का प्रतीक है.
बीएमसी का यह कदम न सिर्फ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि एक समुदाय की पहचान और सह-अस्तित्व के मूल्यों पर भी सीधा आघात है.
बीएमसी का तर्क है कि कबूतरों के कारण आस-पास के इलाकों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं और यह कार्रवाई पूरे शहर में सभी "निर्दिष्ट कबूतर दाना-पानी केंद्रों" पर लागू की जा रही है.
लेकिन स्थानीय निवासियों और धार्मिक संगठनों का आरोप है कि इस अभियान के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक असंवेदनशीलता छुपी है.
जैन प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि "अगर दादर कबूतर खाना को हटाने की कोशिश की गई, तो यह आस्था पर हमला होगा और समुदाय इसे सहन नहीं करेगा."
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