इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व शव्वाल महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है. इसे आम बोलचाल में `रमज़ान ईद` भी कहा जाता है. (Pics / Ashish Raje)
रमज़ान के रोज़ों और इबादतों के बाद ईद-उल-फ़ितर एक ऐसा त्योहार होता है जो न सिर्फ़ आध्यात्मिक संतोष का एहसास कराता है, बल्कि समाज में भाईचारे और आपसी सौहार्द का संदेश भी देता है.
ईद की नमाज़ के साथ सुबह की शुरुआत हुई, और इसके बाद पूरे शहर में जश्न का माहौल नज़र आया.
पारंपरिक कपड़ों में सजे लोग, बच्चों की खिलखिलाहट, सेवइयों की खुशबू और बिरयानी की रौनक ने त्योहार की खूबसूरती को और बढ़ा दिया.
हर कोई अपने-अपने तरीके से खुशियाँ बाँटता दिखाई दिया — कोई ईदी दे रहा था, तो कोई जरूरतमंदों की मदद कर रहा था.
यह त्योहार न केवल उत्सव का प्रतीक है, बल्कि यह ज़कात और फित्रा के ज़रिये सामाजिक बराबरी और सहयोग की भावना को भी प्रबल करता है.
लोग अपने आसपास के ज़रूरतमंदों की मदद कर इस पर्व की सच्ची भावना को ज़िंदा रखते हैं.
ध्यान देने वाली बात यह है कि ईद-उल-फ़ितर की तारीख हर वर्ष एक जैसी नहीं होती, क्योंकि यह चाँद के दिखने पर निर्भर करती है.
इस बार भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में यह पर्व सोमवार, 31 मार्च या मंगलवार, 1 अप्रैल को मनाया जा रहा है. इसकी पुष्टि चाँद के दीदार के आधार पर होती है.
ईद-उल-फ़ितर, अपने मूल में, आत्मचिंतन, दया, और मिल-जुलकर रहने का संदेश देता है. यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे धर्म या संस्कृति कोई भी हो, इंसानियत और मोहब्बत सबसे ऊपर हैं.
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